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________________ दुर्लभ भावना ७. विविधोपद्रवं क्षणभङ्गुरम्। देहमायुश्च कामालम्ब्य धृतिं मूढैः स्वश्रेयसि विलम्ब्यते ।। यह शरीर रोग आदि विविध उपद्रवों से ग्रस्त है, आयु क्षणभंगुर है, फिर मूढ़ व्यक्ति किस धृति का अवलम्बन लेकर अपने कल्याण के लिए विलम्ब कर रहे हैं। गीतिका १२ : धनश्रीरागेण गीयते बुध्यतां बुध्यतां बोधिरतिदुर्लभा जलधिजलपतितसुररत्नयुक्त्या । सम्यगाराध्यतां स्वहितमिह साध्यतां, बाध्यतामधरगतिरात्मशक्त्या ॥१॥ हे आत्मन्! जैसे समुद्र के जल में गिरे हुए चिन्तामणि रत्न का मिलना दुर्लभ है वैसे ही बोधि (सम्यक्त्व) का मिलना अतिदुर्लभ है। तुम जानो, जानो और उसकी तुम सम्यक् प्रकार से आराधना करो, इस जन्म में अपने हित की साधना करो, आत्मशक्ति से दुर्गति का निवारण करो । चक्रिभोज्यादि `रिव नरभवो दुर्लभो, बहुनिगोदादिकायस्थितिव्यायते, भ्राम्यतां घोरसंसारकक्षे । मोहमिथ्यात्वमुखचौरलक्षे ॥ २ ॥ मनुष्य का जन्म मिलना दुर्लभ है। चक्रवर्ती के भोजन आदि के (दस दृष्टान्तों) द्वारा इसकी दुर्लभता समझाई गई है। वह इसलिए दुर्लभ है कि यह जीव बहुत निगोद आदि कायस्थिति से विशाल और मोह तथा मिथ्यात्व प्रमुख लाखों चोरों से व्याप्त भयंकर संसार अरण्य में भ्रमण कर रहा है। - लब्ध इह नरभवोऽनार्यदेशेषु यः, स भवति प्रत्युताऽनर्थकारी । ६९ जीवहिंसादिपापाश्रवव्यसनिनां, माघवत्यादिमार्गानुसारी ॥ ३ ॥ १. अनुष्टुप्। २. देखें-परिशिष्ट (२) में 'सांकेतिक कथाएं'।
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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