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अशौच भावना
जो शरीर केवल मलमय पुद्गलों का समूह है, जो पवित्र भोजन और कपड़ों को अपवित्र बना देता है, उस शरीर में एक परम सारतत्त्व है-मोक्षसाधन का प्रचुर सामर्थ्य। उसका तू चिन्तन कर।
येन विराजितमिदमतिपुण्यं, तच्चिन्तय चेतननैपुण्यम्। विशदागममधिगम्य निपानं, विरचय शान्तसुधारसपानम्॥८॥
जिसके अस्तित्व के कारण यह शरीर अति पवित्र है, उस चेतन की निपुणता का तू चिन्तन कर और पवित्र आगमरूपी निपान-जलाशय को अधिगत कर शान्तसुधारस का पान कर।