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४. संकेतिका परिधि में ही नहीं जीता, वह संस्कारों की दुनिया में भी जीता है। इन सबसे हटकर जिसे अपने अस्तित्व का बोध हो गया, उसने सचमुच समुदाय और व्यवहार-जगत् में रहकर भी एकाकी जीवन जीने की कला को सीख लिया। भगवान् महावीर ने एकाकी बनने का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया
'एगो अहमंसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सइ, एवं से एगागिणमेव अप्पाणं समभिजाणिज्जा।'
___(आयारो, ८/९७) —'मैं अकेला हं, मेरा कोई नहीं है, मैं भी किसी का नहीं है, इस प्रकार प्राणी अपने आपमें अकेलेपन का अनुभव करे।'
जिसने इस एकत्व अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया वह अकेलेपन की भूमिका तक पहुंच गया। वहां जाने पर अनुभव होता है
० सामुदायिक जीवन में भी एकाकीपन। ० अनुस्रोत में प्रतिस्रोतगमन। ० निर्द्वन्द्वात्मक चेतना का अवतरण।