SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३. जमालि 'भन्ते ! आप मुझे अनुज्ञा दें, मैं कुछ दिन आपसे पृथक् होकर स्वतंत्र विहरण करना चाहता हूं' - शिष्य जमालि ने भगवान् महावीर को निवेदन किया। भगवान् ने उसके कथन को सुना, किन्तु मौन रहे। उसने पुनः उसी बात को एकदो बार दोहराया, फिर भी भगवान् ने उसके प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दिया। वह भगवान् का शिष्य और संसारपक्षीय में जामाता था । उभयपक्षों से सम्बन्धित जमालि अब तक भगवान् महावीर के साथ ही जनपद विहार कर रहा था। महावीर सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे। वे जानते थे कि जमालि को स्वतंत्र विहार की अनुमति देना श्रेयस्कर नहीं है। स्वतंत्र विचरण वही व्यक्ति कर सकता है, जो अपने सिद्धान्त में स्थिरमति और दृढ़ है। अस्थिरमति और लचीले सिद्धान्तवाला मुनि पथच्युत हो जाता है। कोई भी नया विचार किसी भी समय उस व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है और वह उस समय अपने आपको संभाल नहीं पाता। पर जमालि को रोका भी नहीं जा सकता था। इस दोहरी समस्या को देखकर भगवान् मौन ही रहे । मौन को अनुमति मानकर जमालि अपने पांच सौ शिष्यों को साथ ले वहां से स्वतंत्र जनपद विहार के लिए प्रस्थित हो गया। नियति बलवान होती है, उसे टाला नहीं जा सकता। जमालि जनपद विहार करता हुआ श्रावस्ती पहुंचा और कोष्ठक चैत्य में ठहरा। एक ओर नैरन्तरिक विहार का श्रम तो दूसरी ओर असंतुलित और अव्यवस्थित भोजन की उपलब्धि । दोनों चर्याओं ने जमालि के शरीर को प्रभावित किया। वह पित्तज्वर से ग्रसित हो गया। उसका शरीर दाह से जलने लगा। शरीर में असह्य वेदना उत्पन्न हो गई। उसने श्रमणों से शीघ्रातिशीघ्र बिछौना करने को कहा । भ्रमणगण उसका बिछौना बिछाने लगे। अत्यधिक बेचैनी और अकुलाहट से जमालि अधीर बना जा रहा था। उसके लिए एक-एक क्षण भी बड़ी व्यग्रता से निकल रहा था। उसने बीच-बीच में एक-दो बार श्रमणों से पूछ लिया- 'क्या
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy