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मुनि मेतार्य
१५९ स्वर्णकार घर से बाहर आया, मुनि को निवेदन करने के लिए कुछ आगे बढ़ा तो देखा कि यव नहीं हैं। तत्काल चेहरे का रंग उड़ गया। हाथ-पैरों में स्तब्धता छा गई। मुनि से पूछा, मुनि मौन रहे। वह जानता था कि यदि आज यह हार महाराजा श्रेणिक को उपहृत नहीं किया गया तो उसे कठोर दण्ड भुगतना होगा। वह अत्यधिक व्यग्र और बेचैन हो उठा। ज्यों-ज्यों समय बीत रहा था त्यों-त्यों वह आवेश में भरता जा रहा था। वह बोला-महाराज! मैं अभी-अभी आपके सामने इन स्वर्णयवों को छोड़कर गया था और क्षणभर बाद ही वापिस लौट आया। इस बीच तीसरा कोई आया नहीं, फिर मेरे ये स्वर्ण-यव कहां गए? स्वर्णकार बार-बार मुनि से उत्तर चाह रहा था और मुनि कोई उत्तर नहीं दे रहे थे। मुनि अब भी मौन खड़े थे। मुनि की इस मौनमुद्रा से स्वर्णकार झुंझला गया। उसका मन सशंकित हो उठा। उसने सोचा-बहुत संभव है कि मुनि ने ही मेरे स्वर्ण-यवों को चुराया हो। अब इनके सिवाय दूसरा कौन उत्तरदायी हो सकता है? उसने पुनः मुनि की भावनाओं पर प्रहार करते हुए कहा-श्रमण! आप समझते होंगे कि स्वर्ण-यव मेरे हैं, किन्तु ये यव मेरे नहीं, सम्राट् श्रेणिक के हैं। यदि मैं इनको वापिस नहीं लौटाऊंगा तो सम्राट् मुझे मृत्युदण्ड देंगे। आप मुनि हैं, साधक हैं। आपने कितना वैभव, सुख-सुविधा का परित्याग किया है। आप अपने त्याग को देखें, मुझे देखें, मन से लोभ का संवरण करें। त्याग के सामने इस तुच्छ वस्तु का मूल्य ही क्या? भूल होना स्वाभाविक है। आप सिद्ध नहीं हैं, साधक हैं। आप मेरी वस्तु लौटा दें, अपने प्रमाद का प्रायश्चित्त कर लें।
स्वर्णकार द्वारा इतना कहने पर भी मुनि का मौन भंग नहीं हुआ। मुनि के भीतर न राग की चेतना थी और न द्वेष की। वे मध्यस्थभाव से सब कुछ सुनते जा रहे थे और सबकी उपेक्षा करते हुए तटस्थभाव से देख रहे थे। वे जानते थे कि यदि राग और द्वेष दोनों में से किसी एक का भी पलड़ा भारी होता है तो बहुत बड़ा अनर्थ घटित हो सकता है। मेरे मौन खोलने का अर्थ है कि इस क्रौंच युगल की हत्या। इसमें स्वर्णकार का भी क्या दोष है! वह बेचारा आतंकित है, भयभीत है। यदि मैं मौन खोल भी दं तो न्याय कहां है? एक के प्रति प्रियता और दूसरे के प्रति अप्रियता स्पष्ट झलक रही है। मुझे दूसरे प्राणों की बलि देने का क्या अधिकार है, क्योंकि मैं ज्ञाता-द्रष्टा की भूमिका में खड़ा हूं। मैं ही संभावित कष्टों को सहन कर सकता हूं और अपने प्राणों की बलि दे सकता हूं।