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________________ बोधिदुर्लभ भावना १२. अनुराग : विराग संध्या की वेला । शर्वरी की काली छाया धीरे-धीरे दिन को रात बनाए जा रही थी। हजारों-हजारों दीपक उसके प्रतिरोध में जल उठे। इलावर्धन शहर के मध्य एक अद्भुत प्रकाश । उमड़ती भीड़। आने वालों का तांता उसे देखकर क्षणभर रुक रहा था । श्रेष्ठी धनदत्त का इकलौता पुत्र इलायचीकुमार । आज वह भी किसी कार्यवश वहां से गुजर रहा था। सहसा भीड़ को चीरकर उसकी दृष्टि सहम गई। चलते पैर ठिठुर गए। भीड़ को चीरकर कुछ आगे बढ़ा। आगे देखा तो नाटक चल रहा था। रूपसीवेश में नट- कन्याएं अपना नृत्य कर रही थीं। लचकती मुद्राएं और थिरकते हुए हाथ-पैर वाद्य-यन्त्रों पर झूम रहे थे। सारी जनता विस्मयातिरेक से उनकी कला देख रही थी। नाटक बड़ा ही बेजोड़ और अद्वितीय था। इलापुत्र उस कला पर न्यौछावर हो गया। विशेषतः एक रूपवती षोडशी नट - कन्या की कला पर। उस षोडशी ने उसके मन को जीत लिया था। उसकी दृष्टि उसी कन्या पर टिकी हुई थी। उसके अंग-प्रत्यंग से लावण्य टपक रहा था और उसकी भावपूर्ण मुद्राएं चित्त को विह्वल बना रही थीं। इलापुत्र यौवन के उस नाजुक मोड़ पर खड़ा था जहां हृदय की उद्दाम कामनाएं प्रदीप्त होती हैं, किसी को अपना बनाया जाता है। नट- कन्या की वह अनुपमेय सुन्दरता और कला उसकी आंखों में ही नहीं, प्रत्युत हृदय में समा गई। मन में सोचा - काश ! यह सुन्दरी मेरी जीवन संगिनी हो जाए तो यह जीवन अपने आपमें मधुमास बन जाए, उसका रंग ही कुछ और खिल जाए । भीतर ही भीतर उस नर्तिका को अपनी बनाने का संकल्प प्रबल हो उठा। फिर क्या था? नवयौवन के छलकते उन्माद और कामनाओं ने इसका पुरजोर समर्थन किया और वह अपने-आप में कृतसंकल्प हो गया। कार्यक्रम संपन्न हुआ। एकत्रित जनसमूह बिखरा । सबने अपनी-अपनी
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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