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________________ १६. संकेतिका तराजू के दो पलड़े होते हैं। यदि दोनों का संतुलन होता है तो वस्तुमापक सूई मध्य में अवस्थित हो जाती है। यदि सन्तुलन नहीं होता है तो वस्तुमापक सूई भारी वस्तु की ओर झुक जाती है। मनुष्य की भी यही स्थिति है । कभी मनुष्य की चेतना प्रियता के कारण प्रियजनों की ओर झुक जाती है। तो कभी अप्रियता के कारण अप्रियजनों की ओर चली जाती है। मनुष्य में प्रियता का भाव भी विद्यमान है और अप्रियता का भाव भी । उसकी एक आंख राग के अंजन से अंजी हुई है तो दूसरी आंख द्वेष के अंजन से अंजी हुई है। कभी वह अनुराग की दृष्टि से किसी को देखता है तो कभी विराग की दृष्टि से देखता है। किन्तु एक तीसरी आंख भी है वह है मध्यस्थता की आंख । योग में तृतीय नेत्र का बहुत महत्त्व है, किन्तु व्यवहारजगत् में व्यवहार को चलाने के लिए तीसरा नेत्र है - माध्यस्थ्य अनुप्रेक्षा । इसका अपना महत्त्व है। संघर्ष का उत्स है— पक्षपात। जहां पक्षपात होता है वहां वैषम्य होता है, शोषण होता है। देश में जितनी रक्तक्रान्तियां हुईं, उनमें एक मुख्य कारण यह भी रहा। मानवजाति ने सदा ही न्याय की वांछा की। जब-जब मनुष्य को कोई न्याय नहीं मिला तब-तब उसे अत्याचार, अमानुषिकता, गरीबी और बेरोजगारी का शिकार होना पड़ा। इसलिए सारा न्याय - शास्त्र भावना के आधार पर विकासशील बना। बड़े-बड़े प्रबुद्ध - चिन्तकों ने इस न्याय के आधार पर ही मानवीय एकता को सुरक्षित रखा। जहां राग की चेतना कार्य करती है, वहां न्याय नहीं होता। जहां द्वेष की चेतना काम करती है, वहां न्याय नहीं होता। न्याय वहां होता है जहां न राग है और न द्वेष है, केवल तटस्थता है। तटस्थ व्यक्ति वह होता है जो केवल जानता है, देखता है, प्रियता और अप्रियता का संवेदन नहीं करता। कोई व्यक्ति उन्मार्ग की ओर जाता है। उसे सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करना अपना कर्त्तव्य है, किन्तु बलपूर्वक किसी को सन्मार्ग पर नहीं लाया जा
SR No.032432
Book TitleShant Sudharas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2012
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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