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प्रमोद भावना ३. 'निर्ग्रन्थास्तेऽपि धन्या गिरिगहनगुहागह्वरान्तर्निविष्टाः,
___धर्मध्यानाऽवधानाः समरससुहिताः पक्षमासोपवासाः। येऽन्येपि ज्ञानवन्तः श्रुतविततधियो दत्तधर्मोपदेशाः,
शान्ता दान्ता जिताक्षा जगति जिनपतेः शासनं भासयन्ति। वे निर्ग्रन्थ भी धन्य हैं, जो पर्वतों की गहन कन्दराओं के गहरे अन्तराल में बैठे हुए हैं, जो धर्मध्यान में एकाग्र बने हुए हैं, समरस से तृप्त हैं और पक्ष-पक्ष, मास-मास का उपवास कर रहे हैं। वे दूसरे निर्ग्रन्थ भी धन्य हैं, जो ज्ञान की आराधना में संलग्न हैं, श्रुत के अध्ययन से विशाल बुद्धि वाले हैं, धर्म का उपदेश दे रहे हैं तथा शान्त, दान्त और जितेन्द्रिय होकर इस जगत् में जिन भगवान् के शासन को तेजस्वी बना रहे हैं। ४. दानं शीलं तपो ये विदधति गृहिणो भावनां भावयन्ति,
धर्मं धन्याश्चतुर्धा श्रुतसमुपचितश्रद्धयाराधयन्ति। साध्व्यः श्राद्धयश्च धन्याः श्रुतविशदधिया शीलमुद्भावयन्त्य
स्तान् सर्वान्मुक्तगर्वाः प्रतिदिनमसकृद् भाग्यभाजः स्तुवन्ति।
वे गृहस्थ धन्य हैं, जो दान, शील और तप के आचरण में रत हैं, भावना का अनुशीलन करते हैं, जो श्रुत से पुष्ट श्रद्धा के द्वारा इस चतुर्विध धर्म की आराधना करते हैं। वे साध्वियां और श्राविकाएं धन्य हैं, जो श्रुत से निर्मल बुद्धि के द्वारा शीलधर्म का पालन करती हैं। पुण्यशाली लोग गर्वमुक्त होकर प्रतिदिन उन सबकी बार-बार स्तुति करते हैं।
५. मिथ्यादृशामप्युपकारसारं, संतोषसत्यादिगुणप्रसारम्।
वदान्यता वैनयिकप्रकारं, 'मार्गानुसारीत्यनुमोदयामः।।
मिथ्यादृष्टि मनुष्यों के भी उपकारप्रधान-प्रवृत्ति, संतोष, सत्य आदि गुणसमूह, दानशीलता और विनम्रप्रकृति-ये सब मोक्षमार्ग का अनुसरण करने वाले हैं, हम इनका अनुमोदन करते हैं।
१-२. स्रग्धरा। ३. उपजाति। ४. 'दानशीलः स वदान्यो' (अभि. ३/१५)। ५. जो सम्यग्दृष्टि नहीं है, किन्तु मोक्षमार्ग का अनुसरण करने वाली क्रिया करता है उसका नाम है मार्गानुसारी।