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________________ पंचाध्यायी" में द्रव्यमन का स्थान हृदय कमल में घनांगुल के असंख्यात भाग प्रमाण मात्र है । द्रव्यमन, भावमन का सहयोगी है। जैविक विकास या विकास क्रम में मानसिक विकास यात्रा सबसे विकसित इकाई है। मन और मस्तिष्क दोनों ही शक्तियां मानव में निहित हैं। जीवात्मा इनके द्वारा वस्तुनिष्ठ जगत् से आत्मनिष्ठ जगत् में प्रवेश पा सकता है। नैतिक विकास नैतिक विकास का प्रारंभ विवेक क्षमता पर निर्भर है। विवेक क्षमता (Rational mind) नैतिक प्रगति की पहली शर्त है। ब्रेडले ने भी कहा - प्रत्येक कर्म के अनेक पक्ष होते हैं। अनेक दृष्टिकोण हैं । इसलिये एकान्त रूप से किसी को नैतिक अथवा अनैतिक कहा नहीं जाता। विश्व में ऐसा कोई कार्य नहीं जिसे किसी एक धारणा से शुभ या अशुभ ठहराया जा सके। अतः नैतिक विकास के लिये शुभाशुभ विवेक आवश्यक है। नैतिक गुणों से व्यक्तित्व का विकास संभव है। - विकासवादी मान्यता में जैविक, बौद्धिक, मानसिक विकास क्रम के साथ जीव के नैतिक विकास का स्तर भी महत्त्वपूर्ण है। अस्तित्व बोध के आधार पर ही नैतिक चेतना का विकास संभव है। मनुष्य अपनी अंतःप्रज्ञा से हेयोपादेय का जिस प्रकार चिंतन करता है, वैसा पशु जगत् में नहीं । पशु के पास न तो कोई अंतःप्रज्ञा है, न कर्तृत्व का ज्ञान। इसलिये वह नैतिक बोध या नैतिक निर्णय करने में सक्षम नहीं है। नैतिक विकास के लिये यथार्थ सत्ता का अवबोध अपेक्षित है। भारतीय संस्कृति का अंचल अनेक नीतियों के ताने-बाने से बुना गया है। कारण नैतिक आदर्श पूर्ण विकास का सहगामी है । भारतीय दर्शन में नैतिक मान्यताएं भारतीय नीति दर्शन में आत्मा की अमरता, पुनर्जन्म का सिद्धान्त, कर्म सिद्धांत एवं कर्म करने की स्वतंत्रता आदि को नैतिकता के आधारभूत तत्त्व माने हैं। बन्धन, उसके कारण तथा बंधन से मुक्ति, मुक्ति के उपाय भी इसी के अन्तर्गत हैं। पाश्चात्य दर्शन में काण्ट ने नैतिकता की तीन मौलिक धारणाओं को स्थापित किया-आत्मा की अमरता, संकल्पस्वातंत्र्य और ईश्वर का अस्तित्व । ०१८६० जैन दर्शन का समीक्षात्मक अनुशीलन
SR No.032431
Book TitleJain Darshan ka Samikshatmak Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaginashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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