________________
कर्म शास्त्र की भाषा में आवेगों का मूल स्रोत है- मोहनीय कर्म। मोह का मूल है-राग-द्वेष। राग-द्वेष का एक चक्र घूम रहा है। वह चक्र है- आवेग और उपआवेग। तालिका के द्वारा स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है
मोहनीय कर्म मूल प्रकृति
संवेग
की प्रवृत्तियां पलायन (Escape) भय (Fear)
अनंतानुबंधी क्रोध,
मान, माया, लोभ संघर्षवृत्ति (Combat) क्रोध (Anger)
अप्रत्याख्यानी क्रोध,
मान, माया, लोभ जिज्ञासा (Curiosity) कुतूहल भाव (Wonder) प्रत्याख्यानी क्रोध,
मान, माया, लोभ भोजनान्वेषण भूख (Appetite)
संज्वलन क्रोध, (Food-seeking)
मान, माया, लोभ पित्रीय वृत्ति (Parental) वात्सल्य
हास्य (Tender emotion) यूथवृत्ति (Social Instinct) | सामूहिकता
(Loneliness) विकर्षण वृत्ति (Repuision)| जुगुप्सा (Disgust)
अरति कामवृत्ति (Sex, Mating) कामुकता (Lust)
भय स्वाग्रहवृत्ति
उत्कर्ष भावना (Self-assertion)
(Positive Self Feelling) आत्महीनता हीन भाव
जुगुप्सा (Submission)
(Negative Self Feelling) उपार्जनवृत्ति स्वामित्व भाव
स्त्रीवेद (Acquisition)
(Feeling of Owenship) रचनावृत्ति (Construction)| सृजन भाव
पुरुषवेद (Feeling of Construction)| याचनावृत्ति (Appeal) दुःख भाव
नपुंसकवेद (Feeling of Appealing) हास्यवृत्ति (Humour) उल्लसित भाव
(Laughting Feeling) कर्मवाद; उसका स्वरूप और वैज्ञानिकता
रति
शोक
-१३१.