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२०. 'पीपाड़ पधारै रे, शरणागत तारै रे।
बहि पथ परबारै रे, समदड़ी सिधारै रे।
सहु काज समारै, सुजन समाज रा रे।। २१. सिवाणची जाणी रे, मळपै मालाणी रे।
महिमा महकाणी रे, जनता उलटाणी रे,
धुर पुर पचपदरै, गुरु करुणा करै रे।। २२. टाळोकर पांचू रे, मिल ढाळ्यो ढांचूं रे,
दुनियां जो भोळी रे, करणै निज दोळी रे।
गणमौली-बोली, जब लों नां सुणी रे।। २३. बहुजन बहकाया रे, गुरु-अवगुण गाया रे,
जीवन पथ पाया रे, हुइ पोषित काया रे। सब गुण विसराया, (ओ) दृश्य दयामणो रे।।
हजार वर स्वीकार रे टाळोकर! शासण रो ऋणो,
अंगीकार रेटाळोकर! शासण रोऋणो। पशुता स्यूं तूं मानवता रो म्हातम पायो रे, मिथ्यादृष्टी रो सम्यगदृष्टी कहिवायो रे। क्यूं अब बण कृतघ्न गुरु रो गौरव विसरायो रे।।
२४. अब श्रीमुख स्यूं शासन-मणी,
सारी बात सुणाई सबरी न्यारी-न्यारी रे। हजार... घटना चातुरगढ़ राजाण' री, अरु बीदाणै दयाराम री नीति दुधारी रे।। हजार...
१. लय : इक्षु रस हेतो रे २. लच्छीराम, रिखीराम, दयाराम, फतेचंद और चिंरजी । ३. लय : शहर में शहर में वैरागी संयम आदरै ४. देखें उ. ३, ढाळ १२, गा. १८-२० ५. देखें उ. ३, ढाळ १५, गा. ३३-३६ ६. बीदासर में दयाराम ने लच्छीराम और रिखीराम के संबंध में लिखत लिखा, फिर भी
उनके साथ दलबंदी करता रहा।
८० / कालूयशोविलास-२