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म्हारो घणां मोल रो माणकियो, कुण पापी ले गयो रे । म्हारा छेल भंवर रो कांगसियो पणिहारयां ले गई रे, हां रे बैरणियां ले गई रे ।। ध्रुव.
डोड मोहर रो कांगसियो मैं हटवाड़ा सूं ल्याई रे । दांत - दांत मोती जड़िया, अधबिच हीरा जड़िया रे । पाड़ोसण ले गई रे, म्हारा आलीजा भंवर रो कांगसियो... । ।
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ज्यां शिर सोवता रे लोय !
उछंगे लीधो हो लाल, राणीये कूकड़ो हो राज ।
गद-गद कंठे रे भाखै उत्तर मर्म नो ।
जिण सिर बाल्हो हो लाल, मुकुट विराजतो हो राज । दैवे कीधो रे छोगो राता चर्म नो । ।
अन्तर ढाळ
हो पिउ पंखीड़ा, नारी गुणावली ताम जो, पिंजरियो कर लीधो झरते लोयणे रे लोय । हो पिउ पंखीड़ा ! पभणे परिहरी मुझ आम जो बिछड़वा मति कीधी अगणित जोयणे रे लोय । ।
संयममय जीवन हो ।
नैतिकता की सुरसरिता में जन- जन मन पावन हो । । संयममय जीवन हो । ध्रुव .
अपने से अपना अनुशासन अणुव्रत की परिभाषा, वर्ण जाति या संप्रदाय से मुक्त धर्म की भाषा । छोटे-छोटे संकल्पों से मानस परिवर्तन हो । । संयम...
पदम प्रभू नित्य समरिये । ध्रुव.
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निर्लेप पदम जिसा प्रभू, प्रभु पदम पिछाण ।
संजम लीन्हो तिण समे, पाया चौथो नाण ।। पदम...
जी थे मनै गोडै न राख्यो । मुगती जावा रो भेद न आख्यो ।।
परिशिष्ट-३ / ३६५