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________________ इसमें प्रथमा विभक्ति है।' यह उत्तर सही था। ___ 'कुमारी ना'-ये दो शब्द हैं। ना का अर्थ है पुरुष। कुमारी ना का विशेषण है। कुमारी को चाहने वाला या तदनुरूप आचरण करने वाला पुरुष 'कुमारी' ही कहलाता है। यहां इच्छा और आचरण अर्थ में जो क्यच् प्रत्यय हुआ उसका लोप होने से शब्द पूर्ववत रह गया। ८५. शीतकाल का समय था। लम्बी और ठिठुरन भरी रातों में भी बालमुनि नींद से तृप्त नहीं होते थे। कालूगणी की मंगलमय छत्रछाया और पूरी निश्चिन्तता, फिर गहरी नींद क्यों नहीं आए? मुनि तुलसी भी उस समय बाल मुनियों में थे। मुनि शिवराजजी कालूगणी के अंग-परिचारक थे। कालूगणी के निर्देशानुसार वे प्रातः लगभग चार बजे मुनि तुलसी को नींद से जगा देते। मुनि शिवराजजी के पीठ फेरते ही मुनि तुलसी फिर से सो जाते और नींद आ जाती। उधर कालूगणी पूछते-'अभी तक 'तुलसी' स्वाध्याय करने आया नहीं है, उसे जगाया नहीं क्या?' मुनि शिवराजजी पुनः वहां जाते और कहते-उठो, मेरे साथ चलो। उठाने पर भी उठते नहीं हो, इस बार मैं साथ लेकर जाऊंगा।' कालूगणी के पास पहुंचने पर वे पूछते- 'देरी से कैसे उठे?' मुनि तुलसी कहते-'मुझे उठाया नहीं (नींद में पता नहीं चलता)।' मुनि शिवराजजी कहते- 'मैं इनको जगाकर आया था, जगकर भी ये वापस सो गए।' एक-दूसरे पर दोषारोपण के सिलसिले में कालूगणी स्वाध्याय का क्रम शुरू करते, फिर भी मुनि तुलसी की नींद नहीं टूटती। तब कालूगणी एक मनोवैज्ञानिक प्रयोग करते। वे फरमाते-'तुलसी! बाहर जाओ, देखो आकाश में तारे कितने हैं? उनकी संख्या कर मुझे बताओ।' मुनि तुलसी तारों की संख्या करने के लिए घूमते, निद्रा टूटती और स्वाध्याय का क्रम शुरू हो जाता। ऐसी घटना एक बार नहीं, अनेक बार घटित होती। इन घटनाओं की श्रृंखला वि. सं. १६६० तक चलती रही। ८६. तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्यश्री भिक्षु के समय में मुनि हेमराजजी हुए थे। मुनि हेमराजजी स्वयं अध्ययन-प्रिय मुनि थे और बाल साधुओं का अध्यापन भी करते थे। आचार्यश्री ऋषिरायजी के समय तक उनकी पौशाल चलती रही। उसका नाम था 'हैम पौशाल' । उसके छात्र थे-मुनि स्वरूपचन्दजी, जयाचार्य, मुनि सतीदासजी आदि। उनके बाद बाल साधुओं की पाठशाला चलाने का इतिहास आचार्यश्री कालूगणी के युग में फिर प्रारंभ हुआ। कालूगणी ने वि.सं. १९८७ के आसपास कुछ शैक्ष मुनियों को मुनि तुलसी परिशिष्ट-१ / ३१६
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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