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षष्ठ उल्लास
यस्य प्रतापतपनो भुवनाद्भुताभो, नोदेति नास्तमयते न तमोऽभिगम्यः । रात्रिंदिवं स्वकिरणैः प्रपुनाति विश्वं, तं मूलसूनुमनिशं मनसा स्मरामि ।।
जिनका प्रताप - सूर्य विश्व में अद्वितीय प्रभा से परिपूर्ण है। जो न उदित होता है, न अस्त होता है और न अन्धकार से पराभूत होता है। जो अपनी रश्मियों से अहर्निश विश्व को पावन करता रहता है, मैं उन मूलसूनु - श्री कालूगणी की मनोयोगपूर्वक सतत स्मृति करता हूं ।
उल्लास : षष्ठ / १७३