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________________ 'करारो कुटिल वेदनी कर्म। ३६. नामां स्यूं आंकीजसी रे, गामां री स्थिति साफ। सुद ग्यारस आषाढ़ की रे, अन्तिम मंजिल आप।। ३७. गंगापुर है सामनै रे, अन्तराल है रात। धन्य-धन्य शासनधणी रे, खूब निभाई बात।। ३८. ढाळ सोळमी आ सुणो रे, ओ पंचम उल्लास। पूज्य-मनोबल नै कहूं रे, लाख-लाख स्याबाश ।। कलश छन्द ३६. उदयपुर दीक्षा-महोत्सव', राजनगर-पदार्पणम् । प्रांत मालव सघन-विहरण, विविध-नगर-निदर्शणम् । मेदपाट पुनः समागम, वेदनाविर्भावनम् । ढाळ सोळह छव कला उल्लास पंचम भावनम्।। शिखरिणी विहारस्यालस्यं हरतु सततं संयतिगणाद्, सतां स्फति नव्यां वितरत च देशाटनकृते। व्रते बाढू दादर्यं दिशत न जरित्वे शिथिलता मुपान्त्योल्लासोऽयं सफलयतु वक्तुश्च हृदयम्।। यह उपान्त्य (अंतिम से पूर्व का) उल्लास मुनिजनों की विहार (यात्रा) के प्रति होने वाली अलसता को दूर करे, देशाटन के लिए उनमें नई स्फूर्ति भरे, व्रतों में दृढ़ता का वर दे, वृद्धावस्था में शैथिल्य न आने दे और कवयिता के हृदय को कृतार्थ करे। उपसंहतिः आचार्य-तुलसी-विरचिते श्री-श्रीकालूयशोविलासे १. उदयपुर-चतुर्मासान्तर्गत-पंचदश-भागवती-दीक्षा-महोत्सव-विवरण.... २. ततो विहृत्य राजनगरे समुदितानां परःशतानां साधु-साध्वीनां वार्षिक-व्यतिकरं ___ समापृच्छ्य याथायथमुपालम्भ-वर्धापन-पुरस्सरं तदुत्साहविवर्धन... ३. मालवदेशं प्रति श्रीआचार्यमहोदयानां परमया सकरुणया दृष्ट्या पादार्पण नीमच-जावद-रतलामादिपुरप्रादुर्भूतं द्वेषदावानलं शमथ-सलिलेन प्रशमय्य च बड़नगरे मर्यादामहोत्सवाभिमण्डन... लयः खिम्यावंत जोय भगवंत रो उ.५, ढा.१६ / १७१
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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