SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६. लाभालाभ और सुख-दुख सम, जीवन-मृत्यु समाणी। निन्दा-स्तुति अपमान-मान में, समता-वृत्ति सयाणी।। १०. व्रण-वेदन स्यूं ग्रसित है यद्यपि म्हारो अंग इयाणी। हस्तांगुलि में ऑप्रेशन की, आज स्थिती उभराणी।। ११. पर गृहस्थ री सीधी सेवा वर्जित, नीति निभाणी। ____ म्हारै गण री आ परंपरा, अब लों रही पुराणी।। १२. क्यूं ऑप्रेशन डॉक्टर कर स्यूं? करस्यूं निज हित हाणी। से अपवाद बाद में, करणी पडै दण्ड-भुगताणी।। १३. बोलै डॉक्टर दो कर जोड़ी, आ है बगत विराणी। बिन शरीर अध्यात्म साधना, करणी कठिन कहाणी।। १४. क्षणभंगुर है जीर्ण-शीर्ण है, जड़ है काया जाणी। पिण इण बिन नहिं सधै साधना, सज्झायी हो झाणी।। १५. जैन अजैन संत-सतियां री, सेवा समय पिछाणी। करता रह्या अनेक बार म्है, आ सौभाग्य-निशाणी।। १६. सहज रूप डॉक्टर तनु सेवा नहिं आ बात सुहाणी। पिण एतादृश संकट-स्थिति में, श्री-आज्ञा अगवाणी।। १७. ओ शरीर लाखां रो रक्षक, तिण स्यूं ताणाताणी। नहिं जगतारण! दूजो कारण, अनुभवस्यो माडाणी।। १८. साच हि वाच अंग है साधन, आ अनुभव में आणी। विधि-विधान भी है कोई वस्तु, करणी है कुर्बाणी।। १६. संकट-घड़ियां खरी कसौटी, क्यूं दुर्बलता ल्याणी? दसरावै पिण जो नहिं दौड़े, तिणरी कीमत काणी।। २०. कोई कुछ भी करै करावै, कुण रोकै ग्रहि पाणी? पिण म्हारी तो एक रूवाळी, नहीं कहीं कम्पाणी।। २१. बो ही होसी जो मर्यादा, गण री है गुणखाणी। जीवै मरै शरीर डॉक्टरां! आत्मा अमर बखाणी।। २२. नहिं औषध-ओजार हि लेणो', मनोवृत्ति मरदाणी। यथाकल्प ही कारज करणो, नगर गाम वन ढाणी।। १. घोड़ा २. मुनि के निमित्त गृहस्थ द्वारा लाई हुई औषधि, औजार आदि लेने की विधि नहीं है। उ.५, ढा.१४ / १६५
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy