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________________ राजन्! समझै चतुर सुजान आन अनभिज्ञ जे रे लोय। नाना कष्ट उठावै रे लोय।। १४. राजन्! सम्यग दर्शन-ज्ञान-चरण निज हितकरू रे लोय। बंधन-मुक्ति दिखावै रे लोय। राजन्! मुक्तात्मा ही परमात्मा परमेश्वरू रे लोय । पुनर्जन्म नहिं पावै रे लोय।। १५. राजन्! सत्संगत ही परम मूल सम्यक्त्व रो रे लोय। धार्मिकता पनपावै रे लोय। राजन्! धार्मिकता ही परम तत्त्व अपनत्व रो रे लोय। जीवन-ज्योति जगावै रे लोय।। १६. राजन्! अनागार सागार धर्म आराधना रे लोय। मुनि श्रावक आराधै रे लोय।। राजन् ! कठिन महाव्रत सहज अणुव्रत-साधना रे लोय। निज-पर कारज साधै रे लोय।। १७. राजन्! यूं विध-विध उपदेश विमल वच वागर्यो रे लोय। झर्यो वचोऽमृत झरणो रे लोय।। राजन्! राणाजी रो हृदय ठर्यो मोदे भर्यो रे लोय। मुश्किल विवरण करणो रे लोय।। १८. राजन्! तेरापंथ-वृतंत तंत संक्षेप में रे लोय। संतपती समझायो रे लोय। राजन्! दृढ़ आचार अपूर्व संगठन इण क्रमे रे लोय। स्वल्प शब्द में गायो रे लोय।। १६. राजन्! स्वावलम्बिता कार्यकुशलता संघ की रे लोय। साक्षात देव दिखाई रे लोय।। राजन्! सूक्ष्माक्षर लिपि-दर्शन बात प्रसंग की रे लोय। दर्शक मति चकराई रे लोय ।। २०. राजन्! भूपति को कर्तव्य सुझायो गुरुवरू रे लोय । धर्म राज्य स्थिति सारी रे लोय। राजन्! बड़ो हुकम मुख बड़ो हुकम कहि नरवरू रे लोय। निसुण्यो हर्ष बधारी रे लोय।। १. देखें प. १ सं. २२ ११२ / कालूयशोविलास-२
SR No.032430
Book TitleKaluyashovilas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages420
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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