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११. दुतिया स्यूं प्रारम्भी, लम्बी जिण री लीक।
सो साबत अब ऊगसी, रोहिणिधव रमणीक ।। १२. नव-नव मानव धावै, आवै ओच्छब-स्थान।
हेतु भव-भ्रम-रो शमन, प्रभु-पद-स्पर्शन मान।। १३. बलि वामा अभिरामा, स्वामी रै दरबार।
धावै गृहकामा तजी, सझी सघन मन प्यार।। १४. नियत समय श्री कालू, झालू डालू-पाट ।
समवसऱ्या मधरी गती, सज्जन-जन-सम्राट।। १५. उच्चासन अधिराजै, साझै आप्त-सबूत।
पुण्य-पुंज अथवा हुयो, निज-जश पिण्डीभूत।। १६. मानूं भानू संगे, धरतो शशधर खार।
विजयी वासर अवतर्यो, सह मुनिगण-ग्रह-तार।। १७. एकण पासे भासे, सौम्य श्रमण-समुदाय।
श्रमणी श्रावक श्राविका, निज-निज पद सोभाय।। १८. नूतन निरुपम निरखी, मण्डप रो निर्माण।
नितप्रति नभ अवगाहणो, सफल गिण्यो निज भाण।। १६. सघन सुकृत सम सिततम, प्रवर पछेवड़ि एक।
मुनिवर प्रधरावी नवी, कीन्हो पद-अभिषेक।। २०. डीले डपटी दुपटी, दीपै धवल प्रकाश।
पूज्य-वदन रयणीधणी, प्रकटी ज्योत्स्नाभास।। २१. नव शासणधव-स्तवना, भव-नाशण रै हेत।
गावै हुलसावै गुणी, श्रमणी श्रमण सचेत।। २२. संघचतुष्टय समुदित, प्रमुदित बोलै वाय।
भाग्यदशा जागी भली, बड़भागी गुरु-पाय ।। २३. जय-जय नन्दा! भद्दा! भई ते चिरकाळ ।
अणजीता जीती करो, जीतां री रिछपाळ।। २४. स्वर्गे अनिमिष-वर्गे, ज्यू सुपर्व-शिरताज।
असुराधिप असुरान में, उडुगण में उडुराज।। २५. व्रतिवर! प्रतपो व्रत-पोषित नित दीन-दयाल!
तीव्र तपोबल स्यूं तरुण, गण-गोकुल-गोपाल! (युग्म) २६. क्रोड बरस क्रोडीकृत, सूरी-पद री सोड़।
शासन-मोड़! सदा रहो, नव अंकां री जोड़।।
उ.१, ढा.१२ / ६५