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________________ २. मन विहार री मूड में, पिण तन सख्त अशक्त। मर्यादोत्सव चौसठे, शहर लाडणूं व्यक्त।। ३. बहु प्रकार प्रारंभियो, औषध रो उपचार। पण सबंक आतंक नहिं, छोड़े गुरु-तनु लार।। ४. पायो पावस पैंसठे, और महोत्सव माघ। छ्यांसठे चोमास पुनि, चन्देरी रा भाग।। ५. बांछा बड़ी विहार री, हद हिम्मत हर बार। दैहिक दुर्बलता प्रबल, बाधक है अनिवार।। 'सुजनां! श्री कालूव्याख्यान ध्यान धरि सांभळो रे लोय। ६. सुजनां! डालचन्द गणचन्द, अमन्द उजागरू रे लोय। सुजनां! उलसै संघ समन्द, महामहिमागरू रे लोय।। ७. सुजनां! अंग प्रबल आतंक, शंक बिन विस्तर्यो रे लोय। सुजनां! राहू-ग्रसित मयंक, अंक अंगीकर्यो रे लोय।। ८. सुजनां! धोरी धर्मवजीर, वीर व्रत आउलो रे लोय। सुजनां! पीड्यो प्रकट शरीर, वेदनी बाउलो रे लोय।। ६. सुजनां! उपजै नहीं उपाय, फसै नहिं फांकड़ी रे लोय। सुजनां! टाळी ही न टळाय, कर्मगति बांकड़ी रे लोय।। आया है मिल डालिम रै दरबार। अति आवश्यक और सामयिक आवेदन उद्गार।। १०. मगन सघन दिल सीमितभाषी, करी प्रार्थना सार। ध्यानाकर्षण कीन्हो गुरु रो, सविनय उचित प्रकार।। ११. श्री जेठांजी श्रमणी-ज्येष्ठा, श्रमणीगण-सिणगार। दोहराई है बा ही घटना, डालिम-दृष्टि निहार।। १२. श्रावक कालुरामजी जम्मड़, वासी पुर-सरदार। गहरी अरज करै गुरुवर स्यूं, वातावरण उदार।। १. लय : भविकां! मिथुन उपर दृष्टान्त कहै जिन २. देखें प. १ सं. १६ ३. लय : स्वामीजी! थारी बा मुद्रा जग ख्यात उ.१, ढा.१० / ८७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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