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________________ २१. विद्याध्ययन सुगुरु-आज्ञा-सुख-शय्या शयन सदेव जी। ___अपणी धुन में मस्त रहै आ, छोगां-सुत री. टेव जी।। २२. मूल कार्य अनुकूल तजी, प्रतिकूल भजै क्यूं भूल जी। जिण गामे नहिं जाणो, तिणरो पंथ-प्रश्न निर्मूल जी।। २३. गमनागमन शयन आसन में, एक सर्वदा ध्यान जी। किंचित मात्र विमात्र न पहुंचे, गतिविधि सद्गुरु-कान जी।। २४. पग-पग पर गुरु रो भय राखे, ताकै नहीं कुनीत जी। महर नजर अभिलाखै आ ही, सुविनीतां री रीत जी।। २५. बहुविध भक्ति बले गुरु रो मन, जाळवियो इण भांत जी। ____ डालिम गणि रो दिल केवटणो, मुश्किल बात नितान्त जी।। २६. आ अनुपम गुरुचरण-लीनता, भक्तिभाव रमणीय जी। निर्मलता आचार-कुशलता, सबनै अनुकरणीय जी।। २७. विक्रम उगणीसे चउसळे, पो. बिद दसमी देख जी। ____ डालिम आया शहर लाडनूं, जगी भाग री रेख जी।। २८. लोक विलोकै ठा विलोचन, हया-भ हद हेज जी। दर्शन करया कि संचित पातक झरया न लागै जेज जी।। २६. सुणत-सुणत व्याख्यान, कान तो नहिं लेवै उद्गार जी। नयन निहार न हारै, मस्तक पद-परसण तैयार जी।। ३०. अहोभाग्य है इण नगरी रा, जग्यो धर्म रो प्रेम जी। ___आर्यप्रवर आचार्यदेव, अधिराजै कुशले-खेम जी।। ३१. मध्याह्ने व्याख्याने स्थाने, छाजै श्री छौगेय' जी। छाने-छाने हृदय-खजाने, ज्ञान भरै अनमेय जी।। ३२. शासनपाल डाल गणिवर अब, करसी गण-सिर-ढाल जी। श्री श्री काल्यशोविलासे, विरमी नवमी ढाळ जी।। ढाळः १०. दोहा १. श्री डालिम री देह में, उपनो रोग-विकार। अन्न-अरुचि कफ है बढ्यो, शोथ श्वास में भार।। ८६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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