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३३. बीदासर सत्तावनै रे, सुजना! राजाणै रस-रंग।
चउमासो अट्ठावनै रे, सुजना! छोगां-सुत पिण संग।। ३४. मरुधर देशे गुणसठै रे, सुजना! पावन पुर जोधाण।
मालाणी' में महामना रे, सुजना! उदित हुयो जगभाण।। ३५. गुरु-आज्ञा बालोतरै रे, सुजना! कालू मगन समेत।
स्थानकवासी साथ में रे, सुजना! चरचा करी सचेत ।। ३६. पाली हो प्रमुदितमनां रे, सुजना! उदयपुरे अविकार। . मर्यादोच्छव माघ रो रे, सुजना! अधिक कियो उपकार ।। ३७. थळी पधाऱ्या ठाट स्यूं रे, सुजना! श्री डालिम गणपाल।
कालूयशोविलास की रे, सुजना! सरस आठमी ढाळ।।
ढाळः ६.
दोहा
१. रूपचन्दजी सेठिया की विनती उर धार।
साठे चौमासो कियो, सुजानगढ़ सुखकार।। २. थळी देश स्थिरवास ज्यू, श्री डालिम रो खास।
छोगां-सुत प्रारम्भियो, तब व्याकरण-प्रयास।। ३. श्रम कर कंठस्थित कर्यो, 'सारस्वत' पूर्वार्द्ध।
चूरू शहर समोसऱ्या, डाल गणीश्वर सार्ध ।। ४. जाति सुराणा रायशशि श्रावक श्रुतसम्पन्न।
विद्यारसिक उपासना करै सुगुरु-आसन्न।। ५. बगड़ ग्रामवासी भला, घनश्यामजी नाम।
अभ्यासी व्याकरण रा, विप्र विशद परिणाम।। ६. निर्मल दिल स्यूं राखता, सत्संगति रो प्रेम।
तन-मन स्यूं सेवा करी, श्रावक ज्यूं दृढनेम।। ७. बहकावट बहुली करी, इतर लोक अनजान।
दूध पिलाणो सांप नै, आंनै विद्यादान।।
१. बालोतरा से आगे के क्षेत्र-जसोल, टापरा, वायतू, कवास, बाड़मेर आदि । २. चर्चा की विशेष जानकारी के लिए पढ़ें मगन-चरित्र, पृ. ३७-४१
३. रायचन्दजी सुराणा, चूरू ८४ / कालूयशोविलास-१