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शासण में इक चीज हि भारी, मुलक-मुलक में महिमा ज्यांरी, तैल-बूंद ज्यूं प्रसरै वारी,
राखी गणि गण स्यूं इकतारी।। २०. जय मघवा माणक गणी रे, महर रखी इकधार। वर बगसीस करी घणी रे, कुरब बढ़ायो सार।
कुरब बढ़ायो अति उल्लासे, रहिया ज्येष्ठ-भ्रात' रै पासे, अगवाणी बण अथक प्रयासे,
विचया देश-प्रदेशां खासे ।। २१. गण-वच्छल ने जाणता रे, जीवन-प्राण समाण। टाळोकर नै टाळता रे, कालकूट विष जाण ।
कालकूट विष जाण सदाई, 'बाबै स्यूं पिण करता डाई'२ शासण-सेवा री सुघड़ाई,
श्री मुख स्यूं गुरुदेव सराई।। २२. सन्ध्या पड़िकमणो करी रे, जोड़ी श्रमण समाज। कालूजी स्वामी कहै रे, सोचो सब मुनिराज ।
सोचो सब मुनिराज सयाणां, किणरी धारां अब सिर आणां, सन्त वदै हो आप पुराणां,
नाम प्रकाशो ज्यूं सहु जाणां।। २३. तब मुनिवर कालू कहै रे, माणक-गणिवर-पाट। डालचन्दजी आपणै रे, शासण रा सम्राट ।
शासण रा सम्राट सुहाया, तिण दिशि नमण करो मुनिराया! वंदो विकसित मन वच काया, सकल संघ में रंग सवाया।।
१. मुनि स्वरूपचन्दजी २. देखें प. १ सं. १७ ३. श्री कालूगणी
८० / कालूयशोविलास-१