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________________ मघवा लारै अब लों युवराज नहीं है, न्यारां में विचरण माणक-वृत्ति रही है।। ३३. प्रातः प्रवचन तो स्वयं सुगुरु फरमाता, मध्याह्र निशा व्याख्यानी शीष सुजाता। छद्मस्थां री छोळां सुण आवै हांसी, निखरै श्री कालू रो व्यक्तित्व विकासी।। ३४. बोलै बालक कालू गुरुदेव! दयालू ! निर्देश मिलै, मैं प्रवचन करूं कृपालू! अवनीतां नै अब मिलगी खुली चुनौती, मघवा महसूस करी इकलौती ज्योती।। ३५. गुरुदेव स्वयं गाणै री गती सिखाता, बोलण री विध व्याख्या री कला बताता। खुद अर्थ करी कालू-मुख ढाळ गवाता, निर्माण शिष्य रो निज कर्तव्य निभाता।। ३६. रहता श्री कालू मघ-पग-अंतेवासी, संयम-जीवन-गतिविधि रा बण अभ्यासी। करणैवाळा मघवा स्यूं करी शिकायत, कालू पडिलेहण समुचित करै न शायत।। ३७. गुरुवर बोलै-थां स्यूं बो ठीक करै है, हळुकर्मी है पापां स्यूं स्वयं डरै है। विश्वास जमायो मघवा-अंतरमन में, व्यक्तित्व निखरणै लग्यो स्वतः जन-जन में।। 'गुरु-गरिमा महिमा भारी। ३८. निज शरीर आमय स्यूं आकुल, कालू धुर वय-धारी रे। श्री माणक सुविनीत बणायो, युवपद रो अधिकारी रे।। ३६. चैत कृष्ण तिथि बीज रीझ आ, गणपति री गुणकारी रे। गच्छ भार सहु सच्छ निभावण, बहुविध सीख उचारी रे।। ४०. पांचम निशि परलोक पधाऱ्या, लोक हजारां तारी रे। भैक्षवगण उपवन-कुसुमन की परिमल प्रबल प्रसारी रे।। १. लय : जय जश गणपति वन में उ.१, ढा.४ / ७१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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