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२३. गुरुदेव द्रवित करुणा आणी, निज गाती शिशु-तन पर ठाणी । दीन्ही मनु युवपद सहनाणी, सौभाग्य घड़ी.. २४. इसड़ी मघ मुनिप महरवानी, छोगां-नन्दन तन-मन मानी । सेवै क्षण-क्षण जीवनदानी, सौभाग्य घड़ी...
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'गुरु - गरिमा महिमा भारी ।
२५. तीन बरस तक रहिया समचै, महर बड़ी मघवा री रे। अब कालू अरु मगन मुनी, हैं आजीवन सहचारी रे।। २६. उग्र विहारे विहरत आया, जयपुर जय-पटधारी रे।
कारण वश दस मास विराज्या, भाग्य दशा भक्तां री रे।। २७. महासती नवलांजी निकटे, छोगां कानकुमारी रे।
गुरु-चरणाम्बुज मधुप रूप है, कालू कलिमलहारी रे ।। २८. पुनरपि गणिवर थळी पधारे, संभारै गण-वारी रे।
गुणपच्चासे अति उल्लासे, रतनगढ़ रतिकारी रे।। २६. पावस पूरी कर गणशेखर, चूरू नजर निहारी रे। 1 माघोत्सव सरदारशहर में, चरम दया-दृग डारी रे।। लावणी छंद
३०. अस्वस्थ अंग मघवा रो रहणै लाग्यो, शिशु कालू रो कोमल हिरदो कुमळाग्यो । भारी शरीर कुख उठणै री बीमारी, उन्हाळै री रातां बा प्यास
करारी । ।
कांटै-सी
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३१. मुख- थूक सूक रसना करड़ी बणज्या, बेचैनी बणी रहै कम-बेसी । संघीय व्यवस्था रो दायित्व निभाणो, सहयोग - स्वल्पता कड़ी कसौटी जाणो ।। ३२. श्री जयाचार्यवर अन्तिम वर्ष अठारै, निश्चित रह्या मघवा युवराज सहारै ।
१. लय: जय जश गणपति वन में
२. देखें प. १ सं. ११
३. सहयोगी साधुओं की कमी
७० / कालूयशोविला॒स-१