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के अव्रत की क्रिया होती है या नही ? यह प्रश्न उठाया। उस युग में प्रश्नोत्तरों का क्रम चलता ही रहता था ।
उस वर्ष खानदेश के लोगों की विशेष प्रार्थना पर कालूगणी ने मुनि घासीरामजी को वहां भेजा। खानदेश की उस प्रथम यात्रा में बहुत अच्छा उपकार हुआ। श्रीडूंगरगढ़- प्रवास में बाव (गुजरात) से राणाजी दर्शन करने आए। उनके विशेष अनुरोध पर पोष महीने में साध्वी हुलासांजी का बाव चातुर्मास घोषित किया।
चौदहवें गीत में सरदारशहर का मर्यादा - महोत्सव, बीदासर का चातुर्मास, छापर का मर्यादा- महोत्सव और शेषकाल के विहार तथा प्रवास का वर्णन है । बीदासर चातुर्मास के बाद कालूगणी लाडनूं होकर छापर पधारे। चिकित्सा की दृष्टि से मुनि तुलसी को लाडनूं रहना पड़ा। उस प्रसंग में कालूगणी की करुणा का उल्लेख गुरु-शिष्य की अन्तरंग आत्मीयता को उजागर करने वाला है। उन्हीं दिनों मुनि वृद्धिचन्दजी की स्खलना पर कालूगणी ने जो अनुशासन किया, उससे पूरे धर्मसंघ को विशेष प्रशिक्षण मिल गया ।
महोत्सव के बाद कालूगणी राजगढ़ पधारे। उस वर्ष गर्मी बहुत भयंकर थी। राजस्थान की गर्मी कैसी होती है, उस समय जैन मुनियों की क्या स्थिति होती है तथा आम जनता क्या करती है, इसका सांगोपांग विवेचन कवि की कल्पना और शब्द-विन्यास में अद्भुत सामञ्जस्य स्थापित करने वाला है ।
पन्द्रहवें गीत का प्रारम्भ गर्मी की उत्कटता का सूचक है । उस वर्ष का चातुर्मास सरदारशहर था । राजगढ़ से सरदारशहर बहुत दूर नहीं है । किन्तु रास्ते
लूणी को लू लग गई। उस स्थिति में रास्ता पार करना कठिन हो गया । कदम-कदम पर रुक्कर चलते हुए एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक पहुंचने में कालूगणी को कितना कष्ट हुआ, इस वर्णन को पढ़कर पाठक भी बेचैन हो सकता है। एक दिन की आकस्मिक वर्षा से मिली थोड़ी-सी राहत से सरदारशहर पदार्पण हो गया ।
सरदारशहर पहुंचने के बाद चातुर्मास शुरू होने पर भी वर्षा विशेष नहीं हुई । श्रावण मास में भी कालूगणी को गर्मी का भयंकर परीषह सहना पड़ा। आखिर भाद्रपद मास में वर्षा हुई । कालूगणी स्वस्थ हुए। धर्मसंघ में प्रसन्नता की लहर आ गई।
उस चातुर्मास में अन्य सम्प्रदाय के एक मुनि ने श्मशान में जाकर धरणा दिया । बहुत समझाने पर भी उन्होंने अपना आग्रह नहीं छोड़ा। आखिर बीकानेर से होम मिनिस्टर शार्दुलसिंहजी ने आकर जैसे-तैसे सामंजस्य बिठाया ।
४८ / कालूयशोबिलास - १