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के साथ दीक्षा की अनुज्ञा प्राप्त हो गई। ज्येष्ठ भ्राता मोहनलालजी की परीक्षा में उत्तीर्ण होने के बाद पोष कृष्णा पंचमी को दीक्षासंस्कार सम्पन्न हुआ। दीक्षा के तत्काल बाद कालूगणी लाडनूं से विहार कर सुजानगढ़ पधार गए। तीसरे गीत में उक्त प्रसंग की भावपूर्ण प्रस्तुति पाठक को उसे बार-बार पढ़ने के लिए अभिप्रेरित करती है।
चतुर्थ गीत का प्रारंभ ग्रन्थकार ने अपने नए जीवन की शुरुआत से किया है। ओज आहार के रूप में गुरु के हाथ का प्रथम ग्रास, छेदोपस्थापनीय चारित्र
और गुरु से प्राप्त शिक्षा की सूचना के साथ ही राजलदेसर महोत्सव का उल्लेख हुआ है। वहां गंगाशहर के श्रावक चातुर्मास की प्रार्थना करने आए। उनकी प्रार्थना स्वीकृत हुई। उस चातुर्मास में अच्छा उपकार हुआ। वयोवृद्ध मुनि पृथ्वीराजजी को उपासना का विशेष अवसर मिला। चातुर्मास के बाद मिगसर महीने में शास्त्रविशारद मुनि डायमलजी का स्वर्गवास हुआ। उस समय भीनासर में दिव्यप्रकाश के साथ एक विमान दिखाई दिया। बीकानेर चोखले में वि.सं. १६७६ और १६८३ के वातावरण में जमीन-आसमान का अन्तर परिलक्षित हुआ।
_ वि.सं. १९८४ में कालूगणी का चातुर्मास श्रीडूंगरगढ था। उस वर्ष थली संभाग में श्रीसंघ-विलायती नाम से एक सामाजिक संघर्ष ने उग्ररूप धारण कर लिया। इस संघर्ष में पीढ़ियों के प्रेम में दरार पड़ गई। बहन-बेटियों का आना-जाना बन्द हो गया। ऐसे समय में कुछ व्यक्तियों ने सामाजिक संघर्ष में धर्मसंघ को घसीटना चाहा। इसके लिए वे अन्यत्र विहारी स्थानकवासी साधुओं को थली में बुलाने की योजना बनाने लगे। समझदार और विवेकसम्पन्न लोगों ने ऐसे अविवेकपूर्ण कदम उठाने का निषेध किया। किन्तु वे नहीं माने। उन्होंने बीकानेर जाकर आचार्य जवाहरलालजी महाराज को थली पधारने का अनुरोध किया। आचार्यजी की भी मानसिकता बन गई। यह चतुर्थ गीत का प्रतिपाद्य है।
भीनासर और बीकानेर के अग्रगण्य श्रावकों ने आपस में परामर्श किया और आचार्यजी की थली संभाग की यात्रा को सफल बनाने का बीड़ा उठा लिया। स्थानकवासी समाज के ही कुछ वृद्ध एवं अनुभवी व्यक्तियों को यह योजना उचित नहीं लगी। उन्होंने अपना निवेदन प्रस्तुत किया, किन्तु उस पर कोई विचार नहीं हुआ।
चातुर्मास की सम्पन्नता के बाद कालूगणी सरदारशहर पधारे। आचार्यश्री जवाहरलालजी महाराज भी वहां पहुंच गए। उस समय तेरापंथी श्रावकों में भी वैचारिक उथलपुथल मच गई। जिन लोगों में धर्म के प्रति गहरी आस्था नहीं थी, जो कलह एवं कुतूहल में रस लेने वाले थे, जिनकी वृत्ति आलोचना करने की
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