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वे विरोध में प्रकाशित सारा साहित्य लेकर राजदरबार में उपस्थित हुए। महाराज गंगासिंहजी विरोधी लोगों पर बहुत नाराज हुए। उन्होंने उस इकरार को रद्द किया, सारा साहित्य जब्त किया, दो व्यक्तियों को देशनिकाला दिया और मुचलका भी किया। इधर तेरापंथ की नीति और शान्तिपूर्ण व्यवहार से महाराज प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा-'आप लोग सत्पथ पर चले, इसलिए आपकी प्रतिष्ठा बढ़ रही है।' राजवर्ग के जो व्यक्ति विरोधियों के चंगुल में आकर उनके सहयोगी बने, उनको भी अच्छा बोधपाठ मिल गया। यह पूरा प्रसंग बीकानरे के राजगजट में लिखा हुआ है।
दूसरे गीत में बीकानेर, जयपुर और चूरू, तीन क्षेत्रों की चातुर्मासिक घटनाओं के संकेत हैं। बीकानेर चातुर्मास में जयाचार्य द्वारा लिखित और सही रूप में सम्पादित भ्रमविध्वंसन ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ। तेरापंथ संघ में प्रथम बार एक साथ तेरह दीक्षाएं सम्पन्न हुईं। उसके बाद राजलदेसर मर्यादा-महोत्सव के अवसर पर जयपुर की प्रार्थना हुई। वि.सं. १९८० का चातुर्मास करने के लिए कालूगणी जयपुर पधारे। स्थानीय लोगों ने पूरा लाभ उठाया। विशिष्ट राजकीय अधिकारी सम्पर्क में आए। वि.सं. १६८१ का चातुर्मास चूरू में हुआ। वहां कालूगणी ने प्रातःकालीन व्याख्यान भगवती-जोड़ के साथ भगवती सूत्र का वाचन किया और रात्रि में रामचरित्र का व्याख्यान सुनाया। साध्वीप्रमुखा जेठांजी का स्वर्गवास उसी चातुर्मास में हुआ। उनके बाद साध्वी कानकुमारीजी ने साध्वीप्रमुखा का दायित्व संभाला।
कालूगणी ने वि.सं. १६८१ का मर्यादा-महोत्सव सरदारशहर करने का चिन्तन किया। किन्तु अचानक संवाद मिला कि मातुश्री छोगांजी अस्वस्थ हैं। उनकी अभिलाषा दर्शन करने की है। कालूगणी बीदासर पधारे और मातुश्री स्वस्थ हो गईं। उस समय सरदारशहर के श्रावक श्रीचन्दजी गधैया ने बीदासर पहुंचकर सरदारशहर के लिए प्रार्थना की। कालूगणी उनकी प्रार्थना स्वीकार कर भयंकर सर्दी के मौसम में सरदारशहर पधारे। काव्यरचना में ऋतुवर्णन का प्रसंग उपस्थित हो जाए तो कवि का भावप्रवाह उन्मुक्त होकर बहने लगता है। आचार्य श्री तुलसी ने भी प्रसंगोपात्त सर्दी की ऋतु का इतना मार्मिक वर्णन किया है कि उसे पढ़ते-पढ़ते वह ऋतु मूर्तिमती हो उठती है।
वि.सं. १६८२ में कालूगणी का चातुर्मास बीदासर था। चातुर्मास के बाद कालूगणी लाडनूं पधारे। वहां एक मास प्रवास हुआ। उस प्रवासकाल में बालक तुलसी उनके व्यक्तित्व से अभिभूत हो गया। माता-पुत्र के रोचक संवाद में यह तथ्य उजागर होता है। बालक तुलसी की वैराग्य भावना, चम्पक मुनि का सहयोग
और कालूगणी की कृपा का ऐसा सुयोग मिला कि बालक तुलसी को बहन लाडां ४२ / कालूयशोविलास-१