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अन्तर ढाळ घोर तपसी हो मुनि ! घोर तपसी ! थारो नाम उठ-उठ जन भोर जपसी, हो मुनि... घोर तपसी हों सुख! घोर तपसी! थारो जाप जप्यां करमां री कोड़ खपसी, हो मुनि...ध्रुव. दो सौ बरसां री भारी ख्यात है बणी, थारो नाम मोटा तपस्यां रे साथ फबसी। हो मुनि...
ओ अनशन आ सहज समता, लाखां लोगां रै दिला में थारी छाप छपसी।। हो मुनि...
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अन्तर ढाळ आवै वर लटकतो कनकध्वज कुमार गलिये अटकतो, आवै...ध्रुव. जोवै विमलपुरी नां वासी, गोखै-गोखै मृगाच्छी रे। ओ आवै सिंहल नो छावो, परणवा प्रेमला लच्छी रे।।
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अन्तर ढाळ आवत मेरी गलियन में गिरधारी * गावत मैं तो पूज तणां गुण भारी २। ज्यांरी सूरत री बलिहारी, ज्यांरी करणी री बलिहारी।। ध्रुव. भरतक्षेत्र में भिक्षु प्रगट्या, भारिमाल शिष्य भारी। सुधरम वीर तणी पर जोड़ी, उत्तम पुरुष उपकारी।। गावत मैं तो पूज तणां गुण भारी।।
अन्तर ढाळ
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वीर विराज रह्या। मनवा ! नाय विचारी रे। थारी म्हारी करतां बीती उमर सारी रे, मनवा !... ध्रुव. गरभवास में रक्षा कीन्ही सदा विहारी रे। बाहर काढो नाथ ! करस्यूं भगती थांरी रे।। मनवा...।।
परिशिष्ट-३ / ३४३