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________________ ४/१ ४/१ ४/२ ४/३ ४/४ ४/४ ४/५ दारू दाखां री, दारू दाखां री । म्हारे छेल भंवर नै थोड़ी-थोड़ी प्याजे रे ।। दारू दाखां री । ध्रुव. ओ लै ओ लै मस्त कलाळी म्हारो टेवटो गिरवी रख लै रे । आवै 'तो सासू रो जायो थोड़ी-थोड़ी प्याजे रे ।। दासू दाखां री । अन्तर ढाळ घड़ि दोय आंवतां, पलक दोय जांवतां, सारो दिन सहेल्यां में लागै ए मरवण, लागै ए मिरगा नैणी, थां बिना घड़ी ए ना आवड़े । म्हांरे बाबोसा रे मांडी गणगौर हो रसिया, गणगौर बालम रसिया, घडी दोय खेलबा ने जायबा द्यो ।। हठीला कानजी! छल्लो मैं नहीं छोडूं । । ध्रुव . ले गागर भरवां कूं बैठी छल्लो मेल किनारे, छल्लो हमारो लिया सांवरा गूजर खड़ी पुकारे । अपना लालजी! छल्लो मैं नहीं छोडूं । । वीर पधारया राजगृही में - * साधुजी ने वंदना नित नित कीजै, प्रह ऊगते सूर रे, प्राणी ! नीच गती मां ते नवि जाये, पामै ऋद्धि भरपूर रे, प्राणी ! इक्षु रस हेतोरे ज्यांरा पाका खेतो रे । अन्तर ढाळ शहर में शहर में वैरागी संयम आदरे । म्हांरै वैरागी रा तीखा परिणाम हो । । शहर में ... सहियां ! गावो हे बधावो ज्ञानी गुरु आपणा आया । आपणा आया है, मालक आपणा आया, दरसण कर जन हरसाया। सहियां... ध्रुव. सूरज - सा तेजस्वी, शीतळ चांदे - सी छाया । मुळकारो, जीकारो पा है रोमांचित काया । । सहियां ! ३४२ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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