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अन्तर ढाळ सैणां थइये जी रे। ध्रुव. पूर्वे गणि आज्ञा थी धास्या, पंच महाव्रत जाणी जी रे। हिवड़ा पिण सिध अरिहंत गणि नी साख करी पहिछाणी रे ।। सैणां
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वारू हे साधां री वाणी।
अन्तर ढाळ रच रह्यो ज्ञान ज चरचा स्यूं।
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अन्तर ढाळ जय बोलो, जय बोलो, नेम जिनेश्वर की, अखिलेश्वर की।
जय बोलो...ध्रुव. तोरण स्यूं ही पाछा मुड़ग्या, बात सुणी जद हिंसा री । जय बोलो... मोह मार बणग्या वैरागी, छोड़ी राजिमती नारी।। जय बोलो...
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अन्तर ढाळ चालो सहेल्यां आपां भैरूं नै मनास्यां हे। भैरूं नै मनास्यां आपां मन रा कोड पुरास्यां हे।।
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३/५ मत ना सिधारो पूरब की चाकरी जी, ध्रुव.
बाय चढ्या छा भंवरजी पीपली जी, हो जी ढोला होय रही घेर घुमेर। सींचण री रुत चाल्या चाकरी जी,
हो जी म्हारी सास सपूती रा पूत।। मत ना सिधारो... .
अन्तर ढाळ
. ३/५, ५/१२ पिउ पदमण नै पूछ जी, हाथ लगाई मूंछै जी।
सुत नों कारण स्यूं छै जी, हूं परदेशे गयो थो मुगधे। किम ए प्रसव्यो बाल? पिउ पदमण नै पूछे जी।।
३३८ / कालूयशोविलास-१