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अन्तर ढाळ सुमतिनाथ सुमता पथ दाता।
जंबू ! कह्यो मान लै रे जाया ! मत ले संयम भार। ध्रुव. औ आलूं ही कामणी जंबू ! अपछर रै उणिहार। परणी नै किम परिहरो, ज्यांरो किम निकलै जमवार।। जंबू !...
भजिये निशदिन कालु गणिंद। ध्रुव. भिक्षू-शासन अधिक विकासन, अष्टम आसन धार। कालु कलिमल-राशि-विनाशन प्रगट्या जगदाधार।। भजिये...
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__ अन्तर ढाळ एक दिवस विषे नृप सुत साथ चौगाने धन्नो आवै अति रंग रसे, बहु जन-वृन्द सुपेखत मेष लड़ावै।। एक दिवस...ध्रुव. उभय मेष तिहां आहुड़िया, जुद्ध करण सम्मुख जुड़िया। कांई आपस में अति ही लड़िया।। एक दिवस...
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अन्तर ढाळ तावड़ा ! धीमो पड़ज्या रे २ म्हारी धण रो दूखै पेट सूरज बादल में छिपज्या रे, तावड़ा...ध्रुव. राजन चाल्या चाकरी स रे, खांधे धरी बंदूक। के तो सागे ले चलो, के कर डारो दो टूक।। तावड़ा...
अन्तर ढाळ ऐसो जादूपति। डाभ मुंजादिक नी डोरी, बंधिया करै हेला नै सोरी। सी तापादिक कर दुखिया, साता बांछै जाणै हुवा सुखिया।।
अन्तर ढाळ कुंवर ! थांस्यूं मन लाग्यो, मन लाग्यो अंतर जाग्यो। निरखू अपलक नैण रे, कुंवर थांस्यूं मन लाग्यो। ध्रुव.
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३३४ / कालूयशोविलास-१