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________________ अपने शिष्य की व्यथा सुनकर गोरखनाथजी शिष्य को संबोधित कर बोले-'जन्म और मृत्यु संसार का निश्चित क्रम है। इसे कोई टाल नहीं सकता। मेरे बाद भी अपना यह आश्रम पंडितों का केंद्र बना रहे, इस दृष्टि से मैं तुझे एक महत्त्वपूर्ण 'गुदड़ी' दे रहा हूं। जब भी तेरे सामने जटिल प्रश्न आए, तुम इसको झड़का लेना। प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा। गोरखनाथजी दिवंगत हुए। विद्वानों ने आश्रम में आना-जाना बंद कर दिया, क्योंकि शिष्य की अज्ञता से वे भलीभांति परिचित थे। कुछ व्यक्ति उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करने गए। प्रसंगवश तत्त्वचर्चा भी चली। शिष्य ने अपनी ‘गुदड़ी' को झड़काया और प्रत्येक प्रश्न को गंभीरता से समाहित कर दिया। आगंतुक लोगों को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाजार में इसकी चर्चा की। विद्वान उत्सुकता के साथ वहां गए। शिष्य ने उनको सम्मान दिया। __ विद्वानों ने उस दिन कुछ नए प्रश्न उपस्थित किए। शिष्य ने 'गुदड़ी' के सहारे प्रत्येक प्रश्न का सही-सही उत्तर दे दिया। श्रोताओं ने अनुभव किया मानो स्वयं गोरखनाथजी ही उनके प्रश्नों को समाहित कर रहे हैं। वे लोग संतुष्ट होकर वहां से उठे और जाते-जाते बोले-'हम तो सोचते थे गुरुजी का शिष्य क्या जानता है? पर यहां तो गुदड़ी में गोरख पैदा हो गया।' यह बात गांव-गांव में प्रसिद्ध हुई और गोरखनाथजी का वह भोला-भाला शिष्य ‘गुदरीवाला गोरख' नाम से पहचाना जाने लगा। ६४. मुनि जोरजी रुग्ण, वृद्ध और अपंग मुनि थे। चलने में असमर्थ होने के कारण वे कई वर्षों से सजानगढ़ में स्थिरवास कर रहे थे। उनकी परिचर्या काफी कड़ी थी, फिर भी कालूगनी के निर्देशानुसार प्रतिवर्ष साधुओं का एक सिंघाड़ा उनकी सेवा में रहता था। एक बार उन्होंने आज्ञा लिए बिना अपने मन से चौविहार अनशन कर लिया। संतों ने इस नासमझी के लिए उनको विवेक भी दिया, पर अनशन तो हो ही चुका था। आचार्यश्री कालूगणी के पास अनशन का संवाद पहुंचा। कालूगणी ने कहा-'इस प्रकार बिना आज्ञा अनशन करना उचित नहीं था, पर जब अनशन कर ही लिया है तो उसे अंत तक दृढ़ता से निभाएं और साधु उनकी परिचर्या करें।' कालूगणी के निकट बैठे थे मुनिश्री मगनलालजी। वे बोले- 'गुरुदेव! अनशन की इस बात को प्रसारित कर देना चाहिए। इसे गुप्त रखना संघ के हित में नहीं है।' कुछ दिन बाद जोरजी का मन दुर्बल हो गया। उन्होंने कहा- 'मैं भूखा नहीं रह सकता। मुझे खाने के लिए दो।' सेवार्थी साधुओं ने उनको बहुत समझाया, ३०६ / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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