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ज़मालि को समझाने का प्रयत्न किया गया। बहुत समझाने पर भी वे इस बात को ग्रहण नहीं कर सके कि क्रियमाण कार्य में जितना कुछ निष्पन्न हो रहा है, वह कृत ही है। सिद्धांत-भेद के कारण वे भगवान महावीर के संघ से मुक्त होकर स्वतंत्र विहार करने लगे।
जो तथ्य प्रत्यक्ष हो, उसे नकार देना एक प्रकार से जड़ता नहीं तो क्या है? जो पाठ सामने हो उसे अस्वीकार करना भी इसी कोटि में आ जाता है।
६४. मुनि नथमलजी (बागोर) बचपन में ही संसार से विरक्त हो गए। मुनिजीवन जीने का उनका संकल्प परिवार वालों के सामने आया तो उन्होंने सहजता से आज्ञा नहीं दी। बालक को डराने-धमकाने के साथ मारपीट की गई। कमरे में बंद कर रखा गया। और भी अनेक प्रकार की कठिनाइयां उपस्थित की गईं। इतनी कठिनाइयों के बावजूद बालक की सहनशीलता और दृढ़ता उल्लेखनीय रही। छोटी अवस्था और मन को विचलित करने वाली परिस्थितियों में विचारों की स्थिरता अपने आप में महत्त्वपूर्ण घटना है।
७०. वि. सं. १६७४, ७५ में राजस्थान प्लेग की बीमारी से आक्रांत हो गया। शहरों के लोग शहर छोड़ देहातों में जाने लगे। गांव के गांव खाली होने लगे। लाडनूं में वृद्ध साध्वियों का स्थिरवास था। वहां से कई परिवार बाहर चले गए। गणेशदासजी चिंडालिया आदि कुछ श्रावकों ने साध्वियों के पास पहुंच कर उनकी मनःस्थिति के संबंध में पूछताछ की। साध्वियों ने कहा-'हमारी इच्छा तो यहीं रहने की है। फिर श्रावक लोग जैसा उचित समझें, हम वैसा करने के लिए तैयार हैं। श्रावक बोले-'महासतीजी! आप जब तक यहां हैं, हम शहर नहीं छोड़ेंगे।' उस भयंकर उपद्रव में जो श्रावक लाडनूं रहे, उनकी सूची इस प्रकार है१. राजरूपजी खटेड़
२. तनसुखदासजी खटेड़ ३. रतनलालजी गोलछा
४. खूबचन्दजी गोलछा ५. नेमीचन्दजी दूगड़
६. धरमचन्दजी गोलछा ७. लच्छीरामजी खटेड़
८. हरकचन्दजी खटेड़ ६. तखतमलजी खटेड़ १०. भैंरूदानजी खटेड़ ११. हजारीमलजी चोरड़िया १२. नथमलजी बैंगानी १३. मोहनलालजी गुनेचा १४. जुवारमलजी बैद १५. रामलालजी गुनेचा १६. महालचन्दजी बैद १७. चतुरभुजजी बैद
१८. जेठमलजी बैद १६. रामलालजी बोथरा
२०. गणेशदासजी चिंडालिया
परिशिष्ट-१ / २८६