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आत्मा नदी संयमतोयपूर्णा, सत्यावहा शीलतटा दयोर्मी । तत्राभिषेकं कुरुपाण्डुपुत्र ! न वारिणा शुद्ध्यति चान्तरात्मा ।। आत्मा नदी है, संयम जल है, सत्य उसका प्रवाह है, सदाचार उसके तट हैं और करुणा उस नदी में मचलती लहरें हैं। पाण्डुपुत्र ! तुम वहां निमज्जन करो । तुम्हारे लिए यही श्रेय है । क्योंकि जल से अंतरात्मा का शोधन नहीं होता । ६३. भागवत स्कंध १०, अध्याय ८४, श्लोक ६३
यस्यात्मबुद्धिःकुणपे त्रिधातुके, स्वधीः कलत्रादिषु भौम इज्यधीः । यत्तीर्थबुद्धिः सलिले न कर्हिचित्, जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखरः । । ६४. चर्पट मंजरी श्लोक १४, १५
• कोऽहं कस्त्वं कुत आयातः का मे जननी को मे तातः । इति परिभावय सर्वमसारं सर्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् । । • का ते कान्ता कस्ते पुत्रः, संसारोऽयमतीवविचित्रः । कस्य त्वं कः कुत आयातस्तत्त्वं चिन्तय मनसि भ्रातः ! ६५. भागवत के श्लोक पर श्रीधरी टीका
अतः साधून् विहायान्यत्रात्मादिबुद्धया सज्जमानोऽतिमन्द इत्याह-यस्येति आत्मबुद्धिरहमिति बुद्धिःत्रयो धातवो वात-पित्त - श्लेष्माणः प्रकृतयो यस्य तस्मिन् कुणपे शरीरे, स्त्रीपुत्रादिषु स्वधीः स्वीया इति बुद्धिः, भौमे भूमिविकारे इज्यधीर्देवताबुद्धिः, यत् यस्य सलिले तीर्थबुद्धिस्तीर्थमिति बुद्धिः, अभिज्ञेषु तत्त्ववित्सु यस्य ता बुद्धयो न सन्ति स एव गोष्वपि खरो दारुणोऽत्यविवेकी यद्वा गवां तृणादिभारवाहः खरो गर्दभ इति ।
६६. वृक्ष पर एक हंस परिवार रहता था । एक वृद्ध हंस के नेतृत्व में युवक और बाल हंस सुखपूर्वक जी रहे थे। वृक्ष के मूल में एक बेल अंकुरित हुई और कालांतर में वह वृक्ष के ऊपर चढ़ने लगी । वह बेल जब तने को पारकर शाखाओं-प्रशाखाओं पर छाने लगी तो वृद्ध हंस ने सुझाव दिया- इस बेल को उखाड़ देना चाहिए। दूसरे हंसों ने उपेक्षा कर दी । वृद्ध हंस ने उनको बार-बार बेल उखाड़ने की बात कही तो वे उत्तेजित होकर बोले- 'आपकी समझ कितनी अधूरी है? इस बेल से हमें क्या हानि होगी ? यह तो हमें अच्छा संरक्षण दे सकती है । धूप, तूफान, सर्दी और वर्षा सब हमें तंग करते हैं, अब हम निश्चित होकर रह सकेंगे।' बेल ने चारों ओर से वृक्ष को घेर लिया। एक ओर छोटा-सा रास्ता रहा, जो पक्षियों के आने-जाने से आवृत नहीं हो सका ।
एक दिन एक बहेलिया उधर से गुजरा। अनेक हंसों को एक सीमित और
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