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________________ ७. कामावसायित्व ८. प्राप्ति ३२. आप्त पुरुषों के आठ प्रातिहार्य१. अशोक वृक्ष ५. स्फटिक सिंहासन २. पुष्प वृष्टि ६. धर्मचक्र ३. दिव्यध्वनि ७. छत्र ४. देवदुन्दुभि ८. चामर ३३. चौदह रज्ज्वात्मक लोक के असंख्य प्रतरों में दो सर्व क्षुल्लक प्रतर सुमेरु पर्वत के मध्य में होते हैं। उनमें चार ऊपर और चार नीचे गोस्तनाकार रूप में आठ प्रदेश होते हैं। वे रुचक प्रदेश कहलाते हैं। लोकाकाश की भांति आत्मा के भी आठ रुचक प्रदेश होते हैं। केवली समुद्घात के समय आत्मा के असंख्य प्रदेश समस्त लोक में व्याप्त हो जाते हैं। उस समय आत्मा के आठ रुचक प्रदेश आकाश के आठ रुचक प्रदेशों पर जाकर अवस्थित हो जाते हैं, ऐसा माना गया है। ३४. कालूगणी का जन्म वि. सं. १६३३ में हुआ और आचार्य-पदारोहण १६६६ में। दो तीयों का दो छक्कों में परिवर्तन एक विशिष्ट घटना है। लेखक के अनुसार कालूगणी के आचार्य पदारोहण के समय छह छक्क मिले हुए थे। छह छक्कों में प्रथम दो छक्के १६६६ की साल के थे। एक छक्क मास का था। कालूगणी के जन्म अथवा नए वर्ष के प्रारंभ से महीनों का संख्यांकन किया जाए तो भाद्रव मास छठा मास होता है। उस समय कालूगणी की अवस्था तेंतीस वर्ष की थी। तेंतीस के दो अंकों की जोड़ छह होती है। इस प्रकार एक छक्क वर्ष का हो गया। पदारोहण की तिथि थी पूर्णिमा (१५)। पांच और एक छह, एक छक्क तिथि का हो गया। छठा छक्क परिषद था। इन छह छक्कों की समन्विति कालूगणी के व्यक्तित्व की विशिष्टता की सूचक है। ३५. आचार्य की आठ संपदा मानी गई हैं-आचार संपदा, श्रुत संपदा, शरीर संपदा, वचन संपदा, वाचना संपदा, मति संपदा, प्रयोगमति संपदा और संग्रहपरिज्ञा। प्रत्येक संपदा के चार-चार भेद करने से ये बत्तीस हो जाती हैं। इन्हें आचार्य के गुण रूप में भी विश्लेषित किया गया है। १. आचार संपदा १. चरण (संयम) युक्तता २. मदरहितता ३. अनियतवृत्तिता ४. अंचचलता परिशिष्ट-१ / २६७
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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