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बालक कालू ने यह कहकर इनकार कर दिया कि मैं आपका एक भी आभूषण पहन लूंगा तो मेरे अपने आभूषण गौण हो जाएंगे। लोग समझेंगे कि सब आभूषण दूसरों के पहने हुए हैं । वैरागी कालू के इस विवेकपूर्ण उत्तर ने बड़े-बड़े लोगों को विस्मित कर दिया ।
६. पिछली कई शताब्दियों से राजस्थान की महिलाओं में घूंघट निकालने की परम्परा चली आ रही है । कालूगणी की दीक्षा के समय उक्त परम्परा बहुत पुष्ट थी। पूरे मुंह पर अवगुण्ठन होने से दर्शनीय वस्तु और आंखों के बीच में एक दीवार - सी आ जाती। इस दीवार को तोड़ने में वे झिझकती थीं और दर्शनीय दृश्य देखने का लोभ संवरण भी नहीं कर सकतीं ।
इस स्थिति में महिलाएं घूंघट में हाथ डालकर एक आंख को दो अंगुलियों के बीच में अवगुण्ठन से मुक्त कर लेतीं। उनके इस प्रकार एक आंख से देखने की प्रक्रिया 'काणी आंख से देखना' कहलाती है । वैरागी बालक कालू को महिलाओं उक्त पद्धति से देखकर प्रसन्नता का अनुभव किया ।
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१०. दीक्षा का एक सप्ताह हो जाने पर नवदीक्षित को छेदोपस्थाप्य चारित्र ( बड़ी दीक्षा) दिया जाता है । उस अवधि में यदि प्रतिक्रमण कंठस्थ नहीं हो पाता है तो चार महीने पश्चात छेदोपस्थाप्य दिया जाता है। मुनि कालू को वह चार महीने से दिया गया ।
११. जब तक आहार की पांती नहीं होती है, तब तक नवदीक्षित समुच्चय में रहते हैं । समुच्चय में रहने वाले को विभाग होने से पहले आहार- पानी मिल जाता है।
१२. आचार्य - पद का दायित्व संभालने के बाद डालगणी बोले - 'अंतरिम काल में गुरुकुलवासी संतों ने सारा काम सुव्यवस्थित ढंग से संभाला, इसलिए कोई अव्यवस्था नहीं हुई ।'
१३. वयोवृद्ध मुनि कन्हैयालालजी ने अत्यंत आग्रहपूर्वक मंत्री मुनि से कहा - ' आप गुरुकुलवासी चौदह मुनि एकमत होकर आचार्य पद के लिए मुनि कालूरामजी का नाम घोषित कर दें ।' विस्तृत विवरण पढ़ें, डालिम - चरित्र, पृ.
४८-५० ।
१४. आचार्य-पद हेतु कालूगणी का नाम प्रस्तावित होने पर मंत्री मुनि ने उनकी जन्मकुंडली आदि दिखाई । कालूगणी को इस बात का पता चला तो उन्होंने उपालंभ की भाषा में मंत्री मुनि से कुछ बातें कहीं और इस दायित्वपूर्ण पद के लिए सर्वथा इनकार कर दिया । विस्तृत विवरण पढ़ें, डालिम - चरित्र, पृ. ५०, ५१।
परिशिष्ट-१ / २५६