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१. सांकेतिक घटनाएं
१. जैन दर्शन के अनुसार तिरछे लोक में असंख्य द्वीप और समुद्र हैं। जम्बूद्वीप इन सबमें मध्यवर्ती है। इसका व्यास एक लाख योजन है।
२. जम्बूद्वीप के सात क्षेत्रों में एक भरत क्षेत्र है। इसके दो विभाग हैं-दक्षिण भरत और उत्तर भरत। उत्तर भरत म्लेच्छ खण्ड के रूप में और दक्षिण भरत आर्य खण्ड के रूप में प्रसिद्ध है।
३. दक्षिण भरत आर्य क्षेत्र कहलाता है। किंतु इसमें भी समग्रता से आर्यों का निवास नहीं है। दक्षिण भरत के जिन क्षेत्रों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि जन्म लेते हैं, वे क्षेत्र आर्य क्षेत्र के रूप में सम्मत हैं। प्रज्ञापना सूत्र के अनुसार दक्षिणार्ध भरत के मध्य खण्ड में मगध, अंग, बंग आदि साढ़ा पचीस देश आर्य हैं।
उक्त क्षेत्रीय वर्गीकरण में मरुस्थल का समावेश नहीं है। किंतु इन शताब्दियों में धार्मिक प्रवृत्तियों का मुख्य केन्द्र रहने के कारण रेगिस्तान के रूप में विश्रुत मरुस्थल क्षेत्र भी आर्य क्षेत्र कहलाने का अधिकारी हो गया है।
४. सिक्का धारना, यह एक मुहावरा है। इसका अर्थ है-अपनी जीवनयात्रा में धार्मिक पक्ष को प्रबल बनाने के लिए लक्ष्य, पथ और पथदर्शक का आलम्बन स्वीकार करना। दूसरे शब्दों में धर्मदेव, धर्म और धर्मगुरु में अपनी आस्था को केन्द्रित करना। बोलचाल की भाषा में इसे गुरुमन्त्र लेना और सिद्धान्त की भाषा में सम्यक्त्व दीक्षा स्वीकार करना कहा जाता है।
५. मुनिश्री आनन्दरामजी के संबंध में आचार्यश्री तुलसी द्वारा कथित पद्य
१. फक्कड़ दावै में फव्यो, सदा संत आणंद। ____ संघ-संघपति चरणरज, रहतो नित निर्द्वन्द ।। २. अवगुण मेटण और रा, तीखा घणां प्रहार।
करड़ी औषध ज्यूं हुवै, जीर्णज्वर उपचार।।
परिशिष्ट-१ / २५७