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लावणी छंद
२१. चंदेरी रो चंपक' दीक्षा बीदाणे, जसकरण जसस्वी छापर में शुभ टाणे । तिण ही दिन सो. चा. २ चाड़वास - चंगाणे, अति विनय विवेक हस्तकौशल सुख माणे । । चोरासिय दीक्षा डूंगरगढ़ सावण में, मालू केशर सोनां तीनूं दृढ़ प्रण में । कार्तिक बिद दौलतगढ़ रो लाल हगामी, सजनांची पन्नांजी तपसण शिवगामी । अमृतां सुंदर चूनां तीनूं सुकुमारी, छव साध्यो संयम अब सुद पख संस्कारी । शिशुवय में सोहन गुरु- पदरज शिर धारे, तीजे उल्लासे दीक्षा - व्रत स्वीकारे । । २२. आषाढ़ शुक्ल पांचम पटुगढ़ दो भाई, दृढ़ नेम नेमजी और समेर सिसाई । पिच्यासिय पावस छापर छापरवासी, कार्तिक में झूमर सपत्नीक सोल्लासी । बिद सातम गंगाशहरी सति लाधूजी, राजा री किस्तूरांजी इन्दूजी । दोनूं बहनां बलि सुवटां चंदेरी री, ली दीक्षा श्री कालू करुणा-दृग हेरी ।। फूलां मां राजकंवर पुत्री पड़िहारे, सोलह दीक्षा सुद जेठ शहर सरदारे । श्री कालू प्रौढ़ प्रताप चकित सुणणारे, तीजे उल्लासे दीक्षा- व्रत स्वीकारे ।। २३. डूंगर - लाधू मन्नो-भत्तू जोड़ायत, जयचन- विरधांजी तीन सजोड़े स्वायत ।
१. बेगवाणी
२. मुनि सोहनलालजी चाड़वास
३. वि. सं. १६८५
४. साध्वी चोथांजी
२४६ / कालूयशोविलास-१