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'म्हारा पूज्य परम गुरु! प्यारा लागोजी।
२६. हाथे लागी निराशा च्यारूं ओर स्यूं,
दो बरसां रो उद्योग सारो मोघ। अजमाणो अब बाकी अस्त्र आखिरी,
करणो सम्यग शास्त्रार्थ रो प्रयोग ।। २७. अजहू भूल्या चूरू-चरचा री चासणी,
शायद चेष्टा है उणरी खटक मिटाण। चर्चा-चर्चा रो हो-हल्लो माच्यो घणो, वाहण बंध्या है अपणे-अपणे ठाण।।
दोहा
२८. कृत-निर्णय गणपति तदा, निश्चय नीति-प्रमाण।
प्रश्न-पडुत्तर रो सुपथ, जैनागम रै पाण।। २६. पर स्थानांतर जायकर, थाप इतर मध्यस्थ।
चर्चा करणे में हुवै, समय शक्ति अस्वस्थ।। ३०. व्यर्थ वितण्डावाद स्यूं, है न प्रयोजन लेश।
देणो निज मन्तव्य को, शान्त रूप सन्देश।। ३१. मानो मत मानो मनुज, क्यूं हो हर्ष विषाद।
करणो है निर्भयपणे, वीर-वचन सिंहनाद ।।
२म्हारा पूज्य परम गुरु! प्यारा लागो जी।
३२. पर नहिं साहस दिखायो शुभ शास्त्रार्थ रो,
हुयो सुख स्यूं मर्यादोत्सव सम्पन्न। छायो आनन्द भक्त छगन धनजी घरे, शय्यातर रो है परम लाभ प्रतिपन्न।।
१. लय : चंदन चोक्यां में सरस बखाण २. लय : चंदन चोक्यां में सरस बखाण ३. छगनमलजी बैद (सुजानगढ़) ४. धनराजजी बैद (सुजानगढ़)
उ.३, ढा.१२ / २२६