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दण्ड-माफी की हुई अभ्यर्थना कई बार है, सुगुरु अस्वीकृत करी, अनुशासना-अधिकार है।।
'म्हारा पूज्य परम गुरु! प्यारा लागो जी।
२१. स्थानकवासी भी खासी संख्या में मिली, तिण पुर आया है ले अभिनव विश्वास। बुझतो दीयो ज्यूं टिम-टिम कर ज्यादा जळे, त्यूं प्रतिपक्ष्यां रो ओ अंतिम उछ्वास ।।
सत्य सदा सुखदाई हो, है सार सत्य संसार में। धीरज राखो भाई हो, अनुभवस्यो साक्षात्कार में।।
२२. घूम-घूम दो बरसां हो, की धूम-धाम हर ग्राम में,
__थळी प्रान्त रो पूरो कर्यो प्रवास। कसर न राखी राई हो, अंगड़ाई ले आगे बढ्या,
खूब दिखायो अंतर रो आभास।। लौकिक लोकोत्तर रो हो, कर मिश्रण लोक लुभावणो,
अल्प पाप अतिनिर्जर रो अधिकार। पुण्य धर्म री करणी हो, दो भिन्न-भिन्न दर्शावतां,
आज्ञा बाहिर पुण्य-बंध स्वीकार।। २४. दया धर्म री भारी हो, ठेकेदारी की ठाट स्यूं,
किया प्रकाशित रच-रच नूतन ग्रन्थ। 'भ्रमविध्वंसन' ऊपर हो, ‘सद्धर्ममंडन' साझियो,
__'अनुकंपा-विचार' 'अनुकंपा-पंथ' ।। २५. अथक-अथक श्रम कीन्हो हो, पंफलेट पत्रिका पुस्तिका,
तेरापंथ मान्यता नै झुठलाण। चर्चा-वार्ता भापण हो, संभाषण आकर्षण भऱ्या,
पर सारा बेकार बण्या बंधाण।। १. लय : चंदन चौक्यां में सरस बखाण २. लय : चंडाली चोकड़ियां हो
२२८ / कालूयशोविलास-१