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________________ पखवाड़ो भी पूरो रह्यो न भेख में रे, चूरू में अधराते आखिर धायो रे ।। २१. एक जन्म में धार्या भेख अनेकधा रे, निन्दक निगुरो नारकीय दुख भोगे रे । अपणा पाप भुगतना पड़सी आपनै रे, व्याधि- आधि संतत संजोग - विजोगे रे ।। २२. पिच्यासी मर्याद-महोत्सव लाडणूं रे, ओ मेळो मंडै प्रतिवर्ष सवायो रे । जै दिन स्यूं कुणा किण जोग स्यूं रे, गुरुवर सह सित्तर संतां ज्वर आयो रे ।। २३. अभयराजजी स्वामी रो कारज सझ्यो रे, अनशनयुत आराधक मरण समाधी रे । दर्शन दीन्हा देव च्यार शरणा दिया रे, सम्यग सरध्या आ असली आजादी रे ।। २४. कर विहार छापर पड़िहारे छाजता रे, भैरूं - हरख' भ्रात री विनती मानी रे । दिन इक्कीस विराज्या पहली बार ही रे, मां-बेट्या' नै दी दीक्षा वरदानी रे ।। २५. वसुगढ़ गणवासव स्यूं की अभ्यर्थना रे, शहर लाडणूंवासी पावस सारू रे । बाकी क्षेत्र फरसणै री विनती करै रे, दी सबनै मंजूरी देव दिदारू रे ।। २६. भर गरमी से काल, झाळ ज्यूं लू चलै रे, आतप अति विकराळ तपोबलधारी रे। सत्पुरुषां री सरणी दसमी ढाळ में रे, करो - करो अनुसरण सरण सुखकारी रे।। १. भैरूंदानजी, हरखचन्दजी सुराणा (पड़िहारा ) २. फूलांजी और राजकंवरजी ( गोगुंदा ) । २२० / कालूयशोविलास-१
SR No.032429
Book TitleKaluyashovilas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
PublisherAadarsh Sahitya Sangh
Publication Year2004
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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