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बिच में छापर पांच पुरां रो झूमको रे,
बाहिर ताल विशाल पेखतां प्यारो रे।। १४. है शय्यातर रेवतमलजी-नाहटा' रे,
बो विशाल पंडाल हवेली पासे रे। प्रथम उपद्रव चल्यो 'जवां रो जोर स्यूं रे,
कुट्टिम प्रांगण फिर सारे चोमासे रे।। १५. प्रातः प्रवचन स्वामी स्वमुख समाचरै रे,
रामचरित्र रात में रस-सो बरसै रे। सारै पुर री करी गोचरी पूज्यजी रे,
परिवारिक परिचय स्यूं जन-मन हरसै रे।। १६. नयो खेत्र अभिनव पावस री फर्सणा रे,
नव-नव यात्री आया हुलस हजारां रे। सामाजिक है सफल व्यवस्था सांतरी रे,
नित नवली-सी बणी बहार बजारां रे।। १७. प्रारंभी 'सिद्धांतचंद्रिका' चाव स्यूं रे,
म्है साथी मुनि पढ़ां परम उल्लासे रे। बै दिन आवै याद साद गहगो हुवै रे,
बो चेहरो बै आंख्यां दिव्य प्रकाशे रे।। १८. पर्युषण पट्टोत्सव चरमोत्सव-छटा रे,
त्याग-तपस्या यशोगान गरणावै रे। पावस पूरयां सुजानगढ़ पावन कर्यो रे,
पोष मास समुदित मुनि सती सुहावै रे।। १६. हो हतभाग हमीरो हीरो हारियो रे
संयम, विषय-वासना रो वशवर्ती रे। गण-अवगुण सीमातिक्रम कर बोलियो रे,
अपणी भूल छुपाणै रो बण अर्थी रे।। २०. प्रतिपक्ष्यां में मिल्यो परम उन्माद स्यूं रे,
दे-दे खूब मुबारकबाद बधायो रे।
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१. श्री हुलासमलजी नाहटा के दत्तक पुत्र .. २. देखें प. १ सं. ६५
उ.३, ढा.१० / २१६