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श्री गुरु-चरणां में। मैं ध्याऊ निशिदिन ध्यान, श्री गुरु-चरणां में, म्हारा अर्पण है दस प्राण, श्री गुरु-चरणां में। सर्वस्व समर्पण जाण, श्री गुरु-चरणां में।।
६. गंगाशहर निवासिया श्रावक-गण समुदित, विनवै यूं बेकर जोड़, श्री गुरु चरणां में। भैरूंदानजी चौपड़ा ऊभा चित प्रमुदित,
सुणज्यो शासन-शिरमोड़, श्री गुरु चरणां में। ७. बीकाणे गुणियासिए कीधो चोमासो,
गुरु भारी संकट झेल। एक घड़ी नहिं वीसरां बो रांगड़रासो,
पर बढ़ी धरम री बेल।। ८. 'धर्मे जय' आ साच है जनता री वाणी',
नहिं इणमें भेळ-सभेल। तपता भोभर-भाड़ ज्यूं बै शीतल पाणी,
ओ पुन्याई रो खेल।। ६. शीघ्र संभाळो आय नै दाखां री बाड़ी,
आ तो झुक-झुक झोला खाय। खड्यो अडीकै चोखळो है आस्था गाढ़ी,
खिण-खिण लाखीणी जाय।। १०. भैरू श्रावक भावना अंतर-मन आंकी,
दै सद्गुरु शुभ संकेत। मोतीड़ां मेह बरसियो आभा मुखड़ा की,
सगळां की खिली सचेत।। ११. विचरत-विचरत ठावियो पावस गंगाणै,
मुनि पृथ्वी पायो पोष। वयोवृद्ध थाणापती जीवन-धन जाणै,
है सारै पुर सन्तोष।।
१. लय : वारू हे साधां री वाणी २. देखें प. १ सं. ८४
उ.३, ढा.४ / १६३