________________
५२. उगणीसै बंयासी पो. बिद पांचम प्रात-सवार।
___ 'इष्ट घटी' प्रगटी ‘धन लगने' 'पुख नक्षत्र' निहार।। ५३. मम भाग्योदय सूर्योदय रो अद्भुत साम्य उदार।
नहिं कोइ इचरज सिरजनहारो गुरुवर गुण-भंडार।। ५४. महिना भर में काम बण्यो सब कालू करुणागार।
जिण पर तूठै जिण घर तू?, अक्षय सुख आसार।।
आज मन हरसै रे, ज्ञानी गुरु घर आया।
५५. तत्क्षण शासणरमण प्रयाणे, मारवाड़ महि लंघी।
गढ़ सुजाण गुरुराण पधारत, ठाट जमायो जंगी।। ५६. श्री श्री कालूयशोविलासे, अति आनंद उपायो।
तीजी ढाळे भाल विशाले, मैं गुरु-शरणो पायो।।
ढाळः ४.
दोहा
१. रामपुरियाजी रै भवन, गणिवर पहलो ग्रास।
अति वच्छलता स्यूं दियो, ओज आ'र आश्वास ।। २. अब छेदोपस्थापनी, पचखायो चारित्र। __दोनां नै दिन आठवें, प्रभुवर परम पवित्र ।। ३. त्यूं समुचित समये शमी, धर-धर निज कर शीष। __मधुर ईख-सी सीखड़ी, बार-बार बगसीस।। ४. छापर पड़िहारै हुई, राजलदेसर देव। __माघ मास मुनि-संघ सह, समवसऱ्या स्वयमेव।। ५. सुद सातम मध्याह्न में, छायो छक्क सजोर।
राजाणे जाणे जम्यो, शक्र सुधर्मा-तोर।।
१. लय : रूडै चन्द निहालै रे नव रंग २. हजारीमलजी रामपुरिया (सुजानगढ़) का कमरा ३. महाव्रतों का विस्तारपूर्वक प्रत्याख्यान
१६२ / कालूयशोविलास-१