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ढाळ: १. दोहा
१. बीकानेर प्रवेश पर, विभुवर करै विचार | विद्वेषी करसी सही, खार-भार- उद्गार ।। २. नित्य उठासी नव-नवा, अजब उदंगल एष । धर्मयुद्ध रचसी सही, असंदिग्ध अविशेष ।। ३. करणो कड़ो मुकाबलो, भरणो शस्त्रागार ।
अजूंझे गूंजे नहीं, विजय - दुन्दुभि द्वार ।। ४. क्षमा खड़ग कर धर सुभग, धर्म-ढाल दृढ़ ढाल । शास्त्र शस्त्र जिन वच कवच, प्रत्याक्रमण कराल । । ५. मुनिपराज आवाज युत, मुनिगण चमू -समूह |
समुदित कर प्रमुदितमना, विरचै शिक्षा - व्यूह | |
'सहु साचै मन सेवो हो, गुरुदेवो देवै सीखड़ी । नहिं तिण सरिखो मेवो हो, स्वयमेवो साकर सूंखड़ी ।।
६. निसुणो श्रमण सयाणा! हो, जिन आणा में आखी अणी, रहणो बहणो महितल सकल सचेत ।। पग-पग जयणां राखो हो, मत झांको मारग स्यूं परै, भी भारी रो स्मरण करो संकेत ।। ७. ओ बाजै बीकाणो हो, तुम जाणो या जाणो नहीं, आपाणो है थाणो महिनां च्यार ।
मानव अत्र निवासी हो, अभ्यासी विविध विवाद रा, धर्माभासी आदत स्यूं अनुदार ।। ८. करसी ही मनमानी हो, अज्ञानी असदालोचना, नहीं अजाणी आ तो बात लिगार । साहस जेतो सझसी हो, नहिं तजसी केड़ तुमारड़ो, छेड़छाड़ तो होसी
ऊठसवार ।।
१. लय : महिलां रो मेवासी हो लसकरियो
२. देखें प. १ सं. ७५
१७८ / कालूयशोविलास-१