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हरियाणै अब हीसार शहर सुद ग्यारस, मां-बेट्यां' भेट्या श्री सद्गुरु पद-पारस । संतोकां नोजां हांसी में हसियारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।।
दोहा २२. चंदन मुनि केसर सती, गीगां और मनोर।
भीवाणी चौमास में, च्यारूं चरण सजोर ।।
लावणी छंद २३. सुद माघ चोथ सरदारशहर सतहत्तर,
अमरो दोलां दो दीक्षा श्रीगुरुवर-कर। रमकूजी मा. सुद चवदस अब बीदाणे, है एक साथ वसु दीक्षा भाग्य प्रमाणै। नोहर रो कुंभकरण, मंगत सुत' साथे, मुनि सूरज और सुपारस हाथो-हाथे। चम्पां संतोकां चूनां चतुर विचारी, दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।।
दोहा २४. निजरकुमारी लाडनू, अठंतरै री साल।
दीक्षा पूनम जेठ सुद, धर वैराग्य विशाल ।। २५. हरनावां रो हरस धर, तपसी ऋषि जसराज।
अठंतरै रै भादवै, वसुगढ़ संयम साझ।। २६. फूलकुंवारी जयपुरी, सुरजां भाद्रा वास।
मिगसर सुद राजाण में, दी दीक्षा सोल्लास ।। २७. भोमराज मुनि चोपड़ा, गंगाशहर निवास।
अठंतरै कार्तिक सुदी, दीक्षा दिव्य प्रकाश।।
१. साध्वी संतोकांजी, साध्वी मनोहरांजी २. मुनि तोलारामजी ३. देखें प. १ सं. ७१
१७२ / कालूयशोविलास-१