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दोहा १४. वर्षा विप्ल चिहोत्तरै, पिचत्तरै की प्लेग।
फैली ग्रामोग्राम में, जन संकट अतिरेग।। १५. मौत घाट उता घणां, आकुल-व्याकुल लोक।
शहर गाम खाली हुया, भगदड़ मची विलोक।। १६. नोबत आई, लाडणूं को उठसी स्थिरवास।
हिम्मत राखी कइ जणां, नहिं खोयो विश्वास ।। १७. अगवाणी चंडालिया, दृढ़मन दास गणेश।
पच्चीसू परिवार मिल, साझी सेव हमेश।। १८. रह्या जिका में एक भी, महामारी री फेट।
नहिं आयो, भाग्या जका कइयक मिटियामेट ।। १६. थिर-थाणे सतियां रया, आ अवसर री बात।
रहसी जुग जुग जीवती, तेरापथ प्रख्यात ।।
लावणी छंद २०. सावण सुद बारस दीक्षा इन्द्रजी की.
गढबोर निवासी वेरागण अति तीखी। सुद चवदस माघ पिचत्तर चातुरगढ़ में, लै दीक्षा करत विभेद चेतना जड़ में। मुनि तोलाराम युगल इन्द्रू इक सेरा, अब छिहतरै बीदासर वास बसेरां । भाद्रव जगनाथ मनोरांजी ली दीक्षा, राजां लिछमां आसोज मास गुरु-शिक्षा। कस्तूरां आशां कार्तिक कर्म विडारी,
दूजे उल्लासे सुणो ख्यात दीक्षा री।। २१. सरदारशहर मोच्छब पूसो पुरवासी,
चूरू में सोनां मनोहरां व्रत-प्यासी। साध्यो संयम ऊदांजी अब टमकोरां, नृपगढ़ वैशाखे सुन्दर सती सजोरां।
१. देखें प.१ सं. ७०
उ.२, ढा.१६ / १७१