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४५. भले सैकड़ों शिष्य, मती लाखां री भरमाणी।
बौद्धिक जनता कभी नहीं इण स्यूं आकरसाणी।। ४६. एक बार सौ बार कहूं मैं 'ना' दृढ़ता ठाणी।
निकट गयां ही पाप, आप करते ताणाताणी।।
'सुणो पंडितजी! गुण-मंडितजी! एक'र तो चालो भरम तजी।।
४७. बोलै जतिवर अति मृदु वाण, नहिं कोई म्हारी ताणाताण।
साग्रह नम्र निवेदन जी, एक'र तो... ४८. भ्रान्त धारणा है अणबूझ, न मिली अब लों संवळी सूझ।
बहुली दुनियां धरमधजी, एकर तो... ४६. कीड़ी-पीड़न समझै पाप, फिर क्यूं मानव-मानस-ताप।
सोचो बहकावट बरजी, एक'र तो... ५०. दीखण में जो आंगळ च्यार, बुध जन भाखै कोस हजार।
आंख कान रो अंतर जी, एक'र तो... ५१. सुण-सुण संचित जो कड़वास, आंख झांकता ही इकलास।
अनुभव री आ बात अजी, एक'र तो... ५२. अति आग्रह म्हारो अनुरोध, नहिं निष्कारण सुज्ञ! सुबोध!
मानो म्हारो हठ समझी, एक'र तो... ५३. एक बार ल्यो नयन निहार, कड़वी औषध लख उपचार।
फिर करज्यो मन री मरजी, एक'र तो...
*गढ़ चूरू में, सद्गुरु-वंदन रघुनंदनजी आवै।।
५४. दीठो अति आग्रह हठ-भीनो, मुश्किल स्यूं हूंकारो दीन्हो।
उपनय पय-धोवण रो चीन्हो', गढ़ चूरू में... ५५. हो डरूं-फरूं-सा आय खड्या, गुरु-सम्मुख सहसा हाथ जुझ्या।
दै परिचय जतिवर कर पकड़यां, गढ़ चूरू में...
१. लय : ऐसो जादूपती २. लय : उभय मेष तिहां आहुड़िया ३. देखें प. १ सं. ५६
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