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२२. अवसर अवर अदेख नै रे, बोलै उन्मुख होय।
थारी है आ भगवती रे, मैं नहिं मानूं कोय रे।। २३. ल्यास्यूं म्हारी भगवती रे, किल्ला मां स्यूं जाय। __किल्ला में तो जन कहै रे, शिल्ला भरी अथाय रे।। २४. यूं कहि चाल्यो वेग स्यूं रे, बिन माने गुरु-वाच।
पाछो फिर आयो नहीं रे, जाण लियो जग साच रे।। २५. पांच रात 'चित्तौड़' में रे, 'पुर' में आया पूज।
एक मास रै आसरै रे, स्थिति कीन्ही अणबूझ रे।। २६. भीलवाडै भल ‘आरज्यै' रे, त्यूं पीतास' 'बागोर'। _ 'मोखुणदो' मारग गही रे, झण्ड 'रायपुर' जोर रे।। २७. दूजे दिन व्याख्यान में रे, बलि प्रतिपक्षी लोग।
आया हिलमिल सामठा रे, चरचा रो उद्योग रे।। २८. अळगी जाजम ढाळ नै रे, बैठा मन आनंद।
ढाळ पांचवीं में सुणो रे, चरचा रो संबंध ।।
ढाळः ६.
दोहा
१. प्रमुख प्रश्न निज पंथ रो, मत-मन्दिर रो थंभ।
पूछे परिषदि गुरु निकट, दम्भ-भाव अवलंब।। २. गायां रो बाड़ो जले, वहि-ज्वाल प्रयोग।
कांई करणो? गुरु कहै, ओ कोइ पूछण जोग? ३. महानंद-आनंद रो अभिलाषी अणगार।
सदा उदासी में रहै, धर्म-धुरा आधार ।। ४. पुनरपि प्रतिवादी वदै, जीव बचायां पाप?
सद्गुरु-पाप-प्रलाप स्यूं, जीव बचावां आप।। ५. गो-जीवां बचियां बिना, दया न घट रै बीच।
प्रत्युत्तर इण प्रश्न रो, आगम-साखे सींच।।
१३० / कालूयशोविलास-१