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१७. मेदपाट पधराण री रे, आज्ञा दी गुरुदेव।
जननी छोगां वीनवै रे, निकट खड़ी स्वयमेव ।। १८. अब हूं किण दिन देखस्यूं रे, मनहर मुनिप दिदार?
ययण-रयण श्री वदन रा रे, सुणस्यूं अब किण बार? १६. कद पाछी पास्यूं बलि रे, पद-पंकज री सेव।
म्हारी वय आ आखरी रे, थारी यात्रा देव! २०. दै मधुरी आश्वासना रे, श्री मुख शासनराव ।
पाछा दरसण वेग स्यूं रे, देवण रा मुझ भाव।। २१. यूं माजी राजी करी रे, भेज्या पुर बीदाण।
तिण दिन स्यूं माजी रह्या रे, बीदासर थिर ठाण'।। २२. पो. बिद एकम पाधरा रे, मेदपाट री बाट।
समवसऱ्या जन उद्धऱ्या रे, शासण रा सम्राट।। २३. खाटू-डेगाणा हुई रे, सित नवमी तिण मास।
ब्यावर पूज्य पधारिया रे, पुरजन पुण्य-प्रकाश ।। २४. दूजे उल्लासे सही रे, कही तीसरी ढाळ।
अब देशाटन रो भवी रे, वर्णन सुणो विशाल ।।
ढाळः ४.
दोहा १. मारवाड़ जोधाण रो, नाबालिग प्रस्ताव । __ यू. पी. में पुनरपि लह्यो, परतख प्रादुर्भाव।। २. परिचित तिण ही प्रांत रा, कौंसिल मेंबर धीर। ___ नगर मुजफ्फरवासिया, लाला सिंह सुखवीर ।।
३. पेश कियो प्रस्ताव यूं, पा संन्यासी-साख। ___ भारत में इत-उत भमै, भिक्षुक चउपन लाख।। ४. नहीं स्वपर कल्याणकर, नहीं धर्म-अभ्यास।
तिण कारण करणो उचित, इण संख्या में ह्रास।। ५. नाबालिग संन्यास री, करणी सख्त मनाह।
साबालिग खातिर लहे, मजिस्ट्रेट री राह ।।
१. वि. सं. १६७१, पोष कृष्णा १२
उ.२, ढा.४ / १२३